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Class 12 Political Science Book-2 Chapter-7 Notes In Hindi
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अध्याय- 7 “क्षेत्रीय आकांक्षाएँ”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | राजनीति विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | स्वतंत्र भारत में राजनीति |
अध्याय नंबर | सात (7) |
अध्याय का नाम | क्षेत्रीय आकांक्षाएँ |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- स्वतंत्र भारत में राजनीति
अध्याय- 7 (क्षेत्रीय आकांक्षाएँ)
क्षेत्र और राष्ट्र
- 1980 के दशक में स्वायत्ता की मांग ने सभी संवैधानिक सीमाओं को लांघ दिया, लोगों ने अपनी मांग के लिए हथियार उठाए, सरकार के खिलाफ कारवाई की और चुनावी प्रक्रिया को भी अवरुद्ध किया।
- सरकार ने आंदोलन कर रहे लोगों को यह भी समझाया कि इस तरह के मुद्दों को संवैधानिक तरीके से सुलझाया जाना चाहिए, लेकिन इसके बाद भी समझोते के समय भी कई हिंसक झड़पें हुईं।
भारत सरकार का नजरिया
- भारतीय संविधान में विभिन्न भाषाई समूहों और क्षेत्रों को अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने और बनाए रखने का अधिकार प्रदान किया है। यह अधिकार इन समूहों को अपनी संस्कृति की विशिष्टता को बनाए रखने में मदद करता है।
- यूरोप के कुछ देशों में ऐसा माना जाता है कि संस्कृति की विविधता राष्ट्र की एकता के लिए खतरा है, लेकिन भारत के संविधान ने इस बात से साफ इंकार किया है। भारत ने अपने क्षेत्रों की अखंडता को बनाए रखने और राष्ट्रवाद को सर्वप्रथम रखा है, लेकिन इसके बावजूद भी इन क्षेत्रों की विविधता के मध्य संतुलन भी बनाकर रखा है।
- भारत ने लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण के चलते भी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्र विरोधी न मानते हुए, इन अभिव्यक्तियों को सुनने का प्रयास किया है।
- लोकतान्त्रिक राजनीति का एक यह भी अर्थ है कि इन क्षेत्रीय समस्याओं और मुद्दों के लिए समुचित नीति निर्माण का खास ध्यान दिया जाएगा, साथ ही उनकी इसमें भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी।
- ऐसी व्यवस्था में तनाव भी उत्पन्न होगा, जो राष्ट्र यह चाहते हैं कि राष्ट्र की एकता के साथ विविधताओं का भी सम्मान हो। ऐसे में क्षेत्रों की ताकत, अलग अधिकार और अस्तित्व के रास्ते में राजनीतिक संघर्ष भी उत्पन्न होगा।
तनाव के दायरे
- भारत के समक्ष आजादी के बाद से ही विभाजन, विस्थापन और रियासतों के विलय और राज्यों के पुनर्गठन को लेकर समस्याएं उभरीं, जिसके बाद विदेशी परवेक्षकों ने भारत की एक राष्ट्र के रूप में टिक पाने की आकांक्षाओं पर संदेह जताया था।
- आजादी के बाद के जम्मू-कश्मीर के मुद्दे ने न केवल भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षों को बढ़ाया इसके साथ कश्मीर घाटी में लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भी आहत किया।
- पूर्वोत्तर के राज्यों नागालैंड और मिजोरम ने भी भारत से अलग होने के लिए आंदोलन किया, दक्षिण भारत में भी द्रविड आंदोलन के द्वारा अलग राष्ट्र के निर्माण की आवाज उठाई गई।
- भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण के लिए भी जन आंदोलन हुए, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ये आंदोलन किए गए। दक्षिण भारत में तमिलनाडु में हिन्दी को राजभाषा बनाने के विरोध में आंदोलन हुए। 1950 में पंजाबी-भाषी लोगों ने अपने अलग राज्य की मांग की, जिसे मानकर 1966 में पंजाब और हरियाणा नाम के राज्य बनाए गए।
- इन प्रयासों ने सभी समस्याओं का हल नहीं निकाला, कश्मीर और नागालैंड जैसे क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान आज तक नहीं मिल सका है।
जम्मू और कश्मीर
- जम्मू और कश्मीर को अनुच्छेद 370 के आधार पर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है, इसके बाद भी यहां राजनीतिक अस्थिरता, सीमा विवाद और आतंकवाद देखा जा सकता है।
- इसके आंतरिक और बाहरी प्रभाव भी सामने आए, जिसके कारण कई निर्दोष लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी और कई लोगों को अपने ही घरों से बेघर कर दिया गया, जैसे कश्मीरी पंडित।
- यह घाटी तीन राजनीतिक क्षत्रों से मिलकर बनी है- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। जम्मू के क्षत्रों में छोटी पहाड़ियाँ और मैदानी भाग हैं, इसमें मुख्य रूप से हिन्दू, मुसलमान और सिख रहते हैं। कश्मीर के क्षत्रों में मुख्यत: कश्मीरी मुसलमान, हिन्दू, सिख बोद्ध तथा अन्य लोग हैं। लद्दाख मुख्य रूप से पहाड़ी इलाका है, यहां कम जनसंख्या का वास है जिनमें मुस्लिम और बोद्ध शामिल हैं।
समस्या की जड़ें
- आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर एक राजसी रियासत थी, इसके राजा हरीसिंह इसे भारत या पाकिस्तान में न मिलाकर स्वतंत्र रखना चाहते थे। इस रियासत की अधिकांश आबादी मुस्लिम थी, इसलिए पाकिस्तान ने इसे अपने हिस्से में करना चाहा।
- शेख अब्दुल्ला जो नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता थे ने एक धर्म निरपेक्ष संगठन के निर्माण से राजशाही के विरोध में जनआन्दोलन का नेतृत्व किया। जवाहरलाल नेहरू शेख अब्दुल्ला के मित्र थे।
- कश्मीर के लोगों का कहना था कि वे सर्वप्रथम कश्मीरी हैं, लेकिन पाकिस्तान का कहना था कि मुस्लिम आबादी की अधिकता के कारण ये पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। इसके लिए ही पाकिस्तान के कबायली घुसपैठियों ने अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर हमला कर दिया।
- भारतीय सेना से सहायता प्राप्त करने के लिए हरिसिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े। कबायली घुसपैठियों को भारतीय सेना ने भगा दिया।
- इसके बाद भी पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण कर लिया, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है। भारत इसका विरोधी है और अभी यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के पास सुरक्षित रखा गया है।
- 21 अप्रैल, 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने मामले की प्रक्रिया को तीन चरणों में बाँटा, पहला- पाकिस्तान को अपने सभी नागरिकों को वापस बुलाना होगा, जो कश्मीर में धोखे से जा घुसे। दूसरा- भारत को अपनी सेना को वापस बुलाना होगा। तीसरा- इस मुद्दे पर स्वतंत्र जनमत संग्रह किया जाएगा।
- इसके बाद 1948 में शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री बनाया गया, भारत ने अनुच्छेद 370 के अनुसार इस राज्य को स्वायत्ता प्रदान की।
- बाहरी और आंतरिक झगड़े– इन्हीं कारणों से कश्मीर की राजनीति का आंतरिक और बाहरी माहौल विवादों से भरा हुआ है। पाकिस्तान की जिद्द के कारण ही कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा अब पाकिस्तान के अधीन है जिस पर भारत के अनुसार गैर-कानूनी ढंग से पाकिस्तान ने कब्जा किया है।
- पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर कहता है। 1947 से चल रहा यह मामला आज भी दोनों देशों के बीच विवाद का विषय है।
- आंतरिक विवादों में अनुच्छेद 370 का मुद्दा है, जिसके कारण कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है, यहां अन्य भारतीय संविधान के कानून लागू नहीं होते। इससे दो मत उभरकर आए हैं- एक मत का कहना है कि अनुच्छेद 370 कश्मीर को भारत का हिस्सा होने से रोकता है, वहीं दूसरे मत के अनुसार इस राज्य को और अधिक स्वतंत्र कर देना चाहिए।
कश्मीर
- कश्मीर की स्वतंत्रता भारतीय एकीकरण में एक गंभीर मुद्दा रहा है, यह समस्या अनुच्छेद 370 और 35-A लगे जाने पर और भी जटिल हो गई।
- अनुच्छेद 370 लगने के बाद इस राज्य का अलग संविधान, ध्वज, संविधान सभा और अलग ही प्रधानमंत्री जैसे विशेषाधिकार दिए गए।
- अनुच्छेद 35-A से इस क्षेत्र में गैर-कश्मीरी लोगों का प्रॉपर्टी खरीदना मना है। इससे स्वायत्त को या बहाल करने या और अधिक स्वायत्ता की मांगें उठने लगीं।
1948 से राजनीति
- 1948 के बाद यहां की राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए, भूमि सुधार और जनकल्याण के कार्य आरंभ होते ही शेख अब्दुल्ला और सरकार के बीच मतभेद शुरू हो गए।
- 1953 में सरकार से विवाद के पश्चात शेख अब्दुल्ला को नजरबंद कर लिया गया, इसके बाद 1953 से लेकर 1974 तक काँग्रेस ने कश्मीर की नीतियों को संभाला। नेशनल कॉन्फ्रेंस काँग्रेस के समर्थन से सत्ता में बनी रही। बाद में इसका विलय भी काँग्रेस में ही हुआ।
- 1965 में संविधान में प्रावधान कर अब राज्य के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री के पद पर नामित किया जाने लगा। 1974 में इंदिरा गांधी से समझौता कर शेख अब्दुल्ला फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने। 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया गया। कुछ समय के बाद फारुख अब्दुल्ला को भी पद से हटा दिया गया।
- 1986 में काँग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई तो लोगों ने राज्य में केंद्र के दखल से नाराजगी जताई।
सशस्त्र विद्रोह और उसके बाद
- 1987 के चुनावों में काँग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को जीत मिली। फारुख अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बने, केंद्र सरकार के राज्य में हस्तक्षेप के कारण विद्रोह राज्य में बना हुआ था जिसने आगे चलकर उग्रवाद का रूप ले लिया।
- 1989 में पाकिस्तान की शह पाकर उग्रवादियों ने राज्य में आंदोलन शुरू कर दिया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया और कश्मीर को सेना के हाथों सौंप दिया गया। जिसने बाद में राज्य में सेना और उग्रवादियों की झड़पों के बीच नागरिकों को भी शिकार बनाया।
- नेशनल कॉन्फ्रेंस को 2002 के चुनावों में बहुमत नहीं मिला, जिसके कारण राज्य में पीपल्स डेमोक्रैटिक अलायंस और कॉंग्रेस की मिलिजुली सरकार बनी।
2002 और इससे आगे
- 2002 के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद पहली बाद 3 वर्ष तक सत्ता में रहे, इसके बाद काँग्रेस के साथ गुलाब नबी आजाद मुख्यमंत्री बने। 2008 में राष्ट्रपति शासन लगा, 2009 में काँग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनी, उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने।
- 2014 में बीजेपी और पीडीपी ने सबसे अधिक मतदान के साथ सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने, उनकी मृत्यु के बाद महबूबा मुफ्ती को राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया गया।
- इनके कार्यकाल में प्रदेश में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने लगीं, जिसके बाद बीजेपी ने अपना गठबंधन वापस ले लिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
- 2019 में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 पारित कर अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। इसके बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख।
पंजाब
- 1980 के बाद पंजाब में कई बड़े बदलाव आए इसमें इसकी सामाजिक बुनावट में बदलाव शामिल है। 1950 में देश के राज्यों का पुनर्गठन किया जा रहा था, पंजाब को इसके लिए 1966 तक इंतजार करना पड़ा। बाद में इसके कुछ हिस्सों से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बनाए गए।
- पंजाब का राजनीतिक संदर्भ– सिखों की राजनीतिक शाखा के तौर पर 1920 में अकाली दल का गठन हुआ। इसी अकाली दल ने ‘पंजाबी सूबा’ के गठन के लिए आंदोलन चलाया। पंजाबी सूबा के गठन के बाद अकाली दल ने 1967 और 1977 में सरकार बनाई।
- इस सरकार को केंद्र ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही बर्खास्त कर दिया, इसमें हिन्दू समर्थन का अभाव और सिख समुदाय का विभिन्न जाति और वर्गों में विभाजन इसे कमजोर बना रहा था, इस समय काँग्रेस की लोकप्रियता पंजाब के दलितों के बीच बढ़ी।
- अकालियों के एक समूह से 1970 के दशक के दौरान पंजाब की स्वायत्ता की मांग उठाई। 1973 में आनंदपुर साहिब सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि क्षेत्रों की स्वायत्त और केंद्र-राज्यों के संबंधों को दुबारा परिभाषित करने की मांग की गई।
- इसमें संघवाद को मजबूत करने की अपील के साथ-साथ सिखों के प्रभुत्व का ऐलान किया। अकाली दल की सरकार 1980 में बर्खास्त हो गई, तो इन्होंने पंजाब से पड़ोसी राज्यों के साथ पानी के बंटवारे को लेकर आंदोलन छेड़ दिया।
- सिख समुदायों की सोच स्वायत्ता को लेकर भी दो जगह विभाजित थी। कुछ नेताओं ने धार्मिक स्वतंत्रता की मांग की और कुछ भारत से अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ की मांग कर रहे थे।
हिंसा का चक्र
- इस स्वायत्ता आंदोलन का नेतृत्व नरमपंथियों के हाथ से चरमपंथियों ने ले लिया। 1984 में उग्रवादियों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को हथियारबंद किले में तब्दील कर दिया गया। इसका उत्तर देते हुए सरकार ने जून, 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया।
- इस ऑपरेशन को सिख समुदाय ने अपने धर्म पर हमला समझा, इसके बाद पंजाब में उग्रवादी चरमपंथी की भावना ने तेजी पकड़ी, इसके परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनके ही एक सिख बाडीगार्ड ने गोली मारकर हत्या कर दी।
- इस घटना ने भारत में सिख विरोधी दंगों को भड़का दिया, दिल्ली में 2 हजार से अधिक सिखों को मार दिया गया। इससे इन्हें आर्थिक हानि भी उठानी पड़ी।
- सरकार ने इन दंगों को रोक पाने में देरी कर दी और हिंसा में शामिल दंगाइयों को सजा भी नहीं दी गई। इसी को लेकर 2005 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूरे देश से संसद में माफी मांगी।
पंजाब में शांति बहाली
- राजीव गांधी ने 1984 में सत्ता में आकर नरमपंथी अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ 1985 में पंजाब समझौते पर हस्ताक्षर किए। पंजाब में शांति स्थापना करने के लिए ये संधि की गई।
- इसमें कहा गया कि चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाए, पंजाब-हरियाणा का सीमा विवाद सुलझाया जाएगा और पंजाब-हरियाणा और राजस्थान के बीच जल नदी के बंटवारे को भी सुलझाया जाएगा।
- सरकार ने उग्रवाद से पीड़ितों को मुआवजा प्रदान किया और वहां विशेष सुरक्षा की मांग को भी सरकार ने स्वीकार लिया।
- पंजाब में ये अमन आसानी से बहाल नहीं हुआ, उग्रवादी हिंसा होती रही इन हिंसाओं को दबाने के लिए मानवाधिकारों का भी उल्लंघन किया गया। इस समय पंजाब में अकाली दल का विभाजन हुआ और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।
- 1992 के चुनावों में केवल 24% लोगों ने ही मतदान किया। 1997 के चनावों में बीजेपी और अकाली दल के गठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। इसके बाद पंजाब में कहीं जाकर शांति स्थापित हो सकी और विकास पर ध्यान दिया गया।
पूर्वोत्तर राज्य
- 1980 के दशक में पूर्वोत्तर में चल रही क्षेत्रीय आकांक्षाएं अपने चरम पर थीं। यहाँ पर मौजूद सात राज्य जिन्हें सेवन सिस्टर्स भी कहा जाता है, में देश की जनसंख्या का कुल 4% निवास करता है। केवल 22 किलोमीटर की एक सड़क ही इसे पूरे भारत से जोड़ने का काम करती है।
- इस इलाके की शेष सीमा चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से लगती है जिसके कारण इन राज्यों को भारत के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया प्रवेशद्वार भी कहा जाता है।
- 1947 के बाद इन इलाकों में काफी बदलाव आए, आजादी के बाद इन रियायतों का विलय भारत में हुआ, 1963 में नागालैंड,1972 में मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय और 1987 में जाकर मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया।
- भारत विभाजन का सीधा असर इन राज्यों पर पड़ा, साथ ही इससे इनकी अर्थव्यवस्था के विकास की गति भी बाधित हुई। दूसरे राज्यों से आ रहे शरणार्थियों से यहाँ की जनसंख्या प्रभावित होने लगी। इन सब कारणों ने पूर्वोत्तर की राजनीति को प्रभावित भी किया।
- धीरे-धीरे इन राज्यों में अलगाववादी आंदोलन, बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप और स्वायत्ता की मांग ने जोर पकड़ा।
स्वायत्ता की मांग
- त्रिपुरा और मणिपुर को छोड़कर उत्तर-पूर्व का पूरा क्षेत्र असम कहलाता था। वहां रह रहे गैर-असमी लोगों ने आसमी भाषा खुद पर थोपे जाने का विरोध शुरू किया।
- जनजातीय नेताओं ने असम को अलग करने के लिए ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन बनाई जिसे बाद में ऑल पार्टी हिल्स कॉन्फ्रेंस के नाम से जाना जाने लगा। इसमें अलग राज्य के निर्माण का नारा लगाया गया।
- 1972 में इन राज्यों का पुनर्गठन कर मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर का निर्माण किया।
- असम में करबी और दिनसा जनजाति समुदायों के लोग अपने लिए अलग राज्य की मांग कर रहे थे। यह माँग बिल्कुल भी पूरी नहीं की जा सकती थी क्योंकि एक छोटे राज्य से एक और राज्य निकालना संभव नहीं था।
- सरकार ने इन्हें संतुष्ट करने के लिए करबी और दिनसा जनजाति समुदायों के लिए जिला परिषद का दर्जा दिया और बोड़ो समुदाय को स्वायत्त परिषद का दर्जा दिया।
अलगाववादी आंदोलन
- इन राज्यों में उठ रही स्वायत्ता की मांग तो फिर भी संविधान के अंतर्गत पूरी कर पाना संभव था, लेकिन अब इन राज्यों ने अलग देश की मांग शुरू कर दी।
- इन्हीं मांगों के चलते अब इन राज्यों में अलगाववादी आंदोलनों की शुरुआत हुई।
- मिजोरम– मिज़ों के लोगों का मानना था कि वे स्वतंत्रता से पहले ब्रिटिश इंडिया के अंग नहीं रहे हैं, इसलिए भारत का इन इलाकों पर कोई हक नहीं है, जिसके बाद मिज़ो हिल्स पर लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया। 1959 में आए अकाल में असम सरकार लोगों की सहायता ठीक से नहीं कर पा रही थी, जिसके चलते मिज़ो नैशनल फ्रन्ट बनाया गया, जिसका नेतृत्व लालडेंगा ने किया।
- इस स्वतंत्रता की मांग के कारण मिज़ो नेशनल फ्रन्ट और भारतीय सेना के बीच 1966 के बाद से 2 दशक तक संघर्ष रहा, जिसे गोरिल्ला युद्ध भी कहा जाता है। पाकिस्तान ने इस संघर्ष में सहायता की, लेकिन भारतीय सेना ने इसे नाकामयाब कर दिया।
- इससे लोगों में अलगाव की भावना बढ़ी, इससे दोनों खेमों को ही नुकसान हुआ, पाकिस्तान में निर्वासित जीवन जी रहे लालडेंगा भारत आए और सरकार से बातचीत शुरू की।
- राजीव गांधी ने इस बातचीत को सकारात्मक रुख दिया, 1986 में इनके बीच शांति समझौता हुआ। मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया और लालडेंगा को पहला मुख्यमंत्री बनाया गया।
- नागालैंड– यहाँ भी अलगाववादी आंदोलन हुए, 1951 से ही अंगपी फिजो ने नागा को भारत से स्वतंत्र रखने के लिए वहां के निवासियों का नेतृत्व किया।
- एक गुट के साथ भारत सरकार का समझौता तो हो गया, लेकिन दूसरे गुट के यह समझौता स्वीकार न करने के कारण नागालैंड का मुद्दा आज भी वैसे का वैसा ही है।
बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन
- भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बड़े स्तर से आप्रवासियों के आने के कारण इन बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन किए गए। ये लोग इनकी जमीने और रोजगार छिन रहे थे।
- असम आंदोलन 1979-1985 तक चला, इस आंदोलन को ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) द्वारा चलाया गया। इस आंदोलन की मांग बाहर से आ रहे बांग्लादेशियों को वापस भेजने की थी।
- इनके अनुसार बाहरी लोगों के आने से असमी अपने राज्यों में ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इन आंदोलनों में बड़ी संख्या में हिंसा हुई। 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के साथ समझौता किया जिसमें बांग्लादेश से आए आप्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से भेजने की बात कही गई, हालाँकि संधि के बाद भी ये समस्या बनी हुई थी।
- इस आंदोलन में सफल होने के बाद AASU और असम गण संग्राम परिषद ने साथ मिलकर एक पार्टी बनाई, 1985 में ये पार्टी सत्ता में भी आई लेकिन आप्रवास की समस्या बनी रही।
समाहार और राष्ट्रीय अखंडता
- देश की आजादी के 70 सालों के बाद भी क्षेत्रीय अखंडताओं से संबंधित कुछ प्रश्नों का हल अभी भी नहीं निकल सका है। 1980 के बाद जाकर भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा आरंभ हुई, जिससे इस लोकतान्त्रिक राजनीति ने कई मुद्दों पर सीख ली है-
- देश के अंदर क्षेत्रीय आकांक्षाएं लोकतंत्र का ही अंग हैं, ये सभी समस्याएं केवल भारत में ही न होकर अन्य देशों जैसे- ब्रिटेन, श्रीलंका और स्पेन में भी हैं।
- इन तनावों के चलते बने दलों को सत्ता में भागीदारी देकर संतुष्ट किया जा सकता है।
- हिंसा के स्थान पर अहिंसा का रास्ता अपनाया जाना चाहिए, जैसे पंजाब, जम्मू-कश्मीर और मिजोरम में अपनाया गया।
- समावेशी विकास के आधार पर आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
समय-सूची
वर्ष | घटना |
1920 | अकाली दल का गठन |
21 अप्रैल, 1948 | कश्मीर मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया |
1980 | स्वायत्ता की मांग का दशक |
1984 | ऑपरेशन ब्लू स्टार |
31 अक्टूबर, 1984 | इंदिरा गांधी की हत्या |
1985 | पंजाब में शांति समझौता |
1966 | पंजाब तथा हरियाणा का पुनर्गठन |
2019 | जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया। |
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