इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 9वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी ”भारत और समकालीन विश्व-1” के अध्याय- 5 “आधुनिक विश्व में चरवाहे” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय-5 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 9 History Chapter-5 Notes In Hindi
आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।
अध्याय-5 “आधुनिक विश्व में चरवाहे“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | नौवीं (9वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास) |
अध्याय नंबर | पाँच (5) |
अध्याय का नाम | “आधुनिक विश्व में चरवाहे” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 9वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास)
अध्याय- 5 “आधुनिक विश्व में चरवाहे”
घुमंतू चरवाहों से आशय उन लोगों से है, जो अपनी रोजी-रोटी के लिए घूमकर कार्य करते हैं। इनके पास मवेशियों का बड़ा झुंड होता है।
घुमंतू चरवाहों की आवाजाही
पहाड़ों में
- 19वीं में सदी में बकरवाल गुज्जर समुदाय भटकते हुए जम्मू-कश्मीर में आकार बस गए, इनके पास भेड़-बकरियाँ होती थीं।
- सर्दियों में इनका डेरा पहाड़ियों के नीचे डलता, और इनके मवेशी वहां मिलने वाली सुखी झाड़ियाँ खाते, गर्मियों में इनका काफिला उत्तर दिशा की ओर हो जाता था।
- गर्मियों के समय में हरियाली छा जाती थी, और यही मवेशियों का चारा बनती। हिमाचल प्रदेश में एक समुदाय को गद्दी समुदाय कहा जाता था। ये भी मौसमी उतार-चढ़ाव करते। ये चरवाहे गर्मियों में फसलों की कटाई और बुआई करके आगे बढ़ जाते थे।
- गढ़वाल और कुमाउनी गुज्जर सर्दियों में भाबर के सूखे जंगलों और गर्मियों में बुगयाल (घास के ऊपरी मैदान) की तरफ चले जाते थे।
- हिमालय के शेरपा, भोटिया और किन्नौर समुदाय के चरवाहे मौसमी बदलावों के साथ बदल जाते, और इनके किसी चरागाह पर ज्यादा न रुकने की आदत से ही, चरगाहों की हरियाली बनी रहती थी।
मैदानों और रेगिस्तानों में
- महाराष्ट्र में धंगर नाम का चरवाह समुदाय जाना-माना था। इनकी आबादी 20वीं सदी की शुरुआत में 4,67,000 थी। इनमें से कुछ का काम कंबल और चादर बनाने और कुछ का काम भैंसे चराने का था।
- बरसात में ये मध्य पठारों पर रहते थे, यहाँ से ये बाजरे की कटाई कर अक्टूबर में पश्चिम की ओर चले जाते थे। इसके बाद इनके मवेशी कोंकण में जाकर बारिश के बाद हुई फसलों की कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों को खाते थे।
- आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गोल्ला समुदाय गाय, भैंस और कुरुमा तथा कुरुबा समुदाय भेड़, बकरियाँ पालते थे, ये हाथ से बने कंबल बेचते थे। जानवरों के साथ-साथ ये अन्य काम भी करते।
- बंजारे भी चरवाहों में प्रसिद्ध नाम है, ये मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाकों में रहते हैं।
- राइका समुदाय राजस्थान का समुदाय है। ये समुदाय बरसात के दिनों में अपने ही गावों में जैसे जोधपुर, बाढमेर, जैसलमेर और बीकानेर में रहते थे। कुछ राइका ऊंट और कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।
- चरवाहों की जिंदगी इसी तरह सोच-विचार कर आगे बढ़ती, और उन्हें यह भी ध्यान देना होता था कि रेवड़ (इनके मवेशी) एक इलाके में कितने दिन रह पाएंगे।
- रास्ते में चलते समय इन्हें किसानों और गांवों के लोगों से संबंध बनाने होते थे, ताकी उनके खेतों में फसल की कटाई के बाद बचे अवशेष इनके जानवरों को चरने को मिल सके।
उपनिवेशवाद के दौरान चरवाहों का जीवन
इस काल ने चरवाहों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया, इनके घूमने के स्थानों को सीमित कर दिया गया, लगान में भी वृद्धि की गई। यह सब निम्न कारणों से हुआ-
पहला कारण–
- अंग्रेजी सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा खेत की जमीनों से आता था, इसलिए सरकार चरगाहों की जमीन को खेतों में बदलना चाहती थी। 19वीं सदी में बनाए कानूनों के अनुसार सरकार ने उन जमीनों को अपने कब्जे में कर लिया, जिनपर खेती नहीं होती थी, और इन्हें खेती के लायक बनाया गया।
दूसरा कारण–
- अंग्रेजी सरकार ने वन-कानून के चलते ऐसे जंगलों को भी आरक्षित किया जिसमें देवदार और साल की लकड़ियाँ होती हैं। इससे चरवाहों के जंगलों में प्रवेश पर पाबंदियाँ लगा दी गईं।
- वन अधिनियम के चलते उन्हें आवश्यक जंगलों में भी जाने का अधिकार नहीं था। उनके जंगलों में जाने को लेकर भी कई कानून बना दिए गए, परमिट के आधार पर भी उन्हें कुछ जंगलों में ही जाने की छूट दी गई थी। उनमें भी उन्हें सीमित समय के लिए ही भेजा जाता था।
तीसरा कारण–
- इन्हें अंग्रेजी अवसर शक की नजर से देखते थे, उनके अनुसार गाँव की जनता को एक स्थान पर रहना चाहिए, ये मानते थे कि एक स्थान पर रह रहे लोगों को पहचान पाना आसान है। ये इन्हें अपराधी मानते थे।
- 1871 में इन समुदायों को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया और इनकी बिना परमिट के आवाजाही करने पर रोक लगा दी गई।
चौथा कारण–
- अंग्रेजी सरकार ने मवेशियों पर टैक्स लगा दिया, 19वीं सदी के मध्य में हर एक मवेशी पर टैक्स लिया जाने लगा, और यह मांग बढ़ती ही जा रही थी। चरवाहों को चरगाह के अंदर आने के लिए भी टैक्स का ‘पास’ दिखना पड़ता था।
चरवाहों के जीवन पर प्रभाव
- चरागाहों की संख्या में कमी आई। जंगलों को आरक्षित करने के कारण मवेशियों को चरने के लिए ज्यादा स्थान नहीं मिल पाता था।
- पहले चरागाहों के चरने के बाद इन इलाकों को वापस हरा होने का समय मिल पाता था, अब जगह की कमी के कारण चरागहे ज्यादातर भरे ही रहते थे।
समस्या का समाधान
- चरवाहों ने इस स्थिति में अपने मवेशियों की संख्या कम कर दी। राइका समुदाय ने विभाजन के बाद अपने चरागाहों को हरियाणा के खेतों की ओर मोड़ दिया।
- कुछ धनी तबके के चरवाहे जमीने खरीद कर वहीं बस गए। कुछ व्यापार करने लगे। इन सभी हालातों में भी ये समुदाय आज भी मौजूद हैं।
- चरवाहे आने-जाने पर रोक लगाएं जाने पर अपनी दिशा में बदलाव कर देते हैं, अपना मूल पेशा बदल कर अन्य पेशे अपना लेते हैं। केवल भारत के चरवाहों ने नियमों में बदलाव का सामना नहीं किया बल्कि अन्य देशों में भी ऐसा ही हुआ।
अफ्रीकी चरवाहों का जीवन
- यहाँ दुनिया की आधी से ज्यादा चरवाहा आबादी रहती है। यहाँ के मुख्य समुदाय हैं- तुर्काना, सोमाली, बोरान आदि।
- ये गाय, ऊंट, बकरी, भेड़ इत्यादि पालते हैं। ये व्यापार और खेती के जरिए व्यापार करते हैं।
- मासाई समुदाय के उदाहरण से पता चलता है कि इस समुदाय की आबादी का बड़ा हिस्सा पशुपालन करता है, ये पूर्वी अफ्रीका (दक्षिण कीनिया में- 3,00,000) और (तंजनियां में-1,50,000) रहते हैं।
- इन चारागाहों पर लगी कानूनी बंदिशों ने इनकी जमीनें इनसे छीन लीं। औपनिवेशिक काल से पहले उत्तरी कीनिया और तंजानिया तक घास के मैदानों का विस्तार था, ये मासाईलैंड कहलाता था, 19वीं सदी के आखिर में यूरोप के साम्राज्यवाद ने इन इलाकों पर कब्जा कर लिया।
- इनके इलाकों को कम कर दिया गया, करीब 60% जमीनों को उन्होंने अपने हिस्से में कर लिया और चरवाहों को सूखे इलाकों में भेज दिया।
- 19वीं सदी के अंत तक चरवाहों के जमीनों पर खेती की संख्या बढ़ा दी गई। औपनिवेशिक काल से पहले मासाई जनजाति की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति बेहतर थी, यह अब बेहद खराब हो गई।
- कीनिया के नेशनल पार्क जैसे- मारा, साम्बुरु और तंजानिया का सेरेंगेटी नेशनल पार्क (14,760 वर्ग किलोमीटर), ये वे चरागाह थे, जिनपर अब तक मासाई का कब्जा था, इन्हें अंग्रेजों द्वारा आरक्षित कर यहाँ इन समुदायों की आवाजाही को बंद कर दिया गया।
- कुछ सीमित स्थानों पर चारागाह कराने का नतीजा यह हुआ कि मवेशियों के लिए चारा कम होता चल गया, और इनके पेट भरने की समस्याएं उभरने लगीं।
आवाजाही पर पाबंदियाँ
- उपनिवेशवादी सरकार ने मासाई की आवाजाही पर कई तरह से रोक लगा दी, जहां ये पहले चरवाहों के साथ दूर निकाल जाते थे, अब ऐसा संभव नहीं था।
- किसी इलाके की बाहरी सीमा पर जाने के लिए इन्हें अब विशेष परमिट की आवश्यकता थी, यह परमिट बनवाना भी बेहद कठिन था, किसी नियम को न मानने पर इन्हें सजा दी जाती थी।
- अंग्रेजी सरकार ने इन समुदायों को खतरनाक और बर्बर समझा, और अपने व्यापार में काम कराने से भी मना कर दिया, इन्हें सड़के बनाने और फैक्ट्रियों से माल निकालने जैसे ही काम दिए जाने लगे।
- इन्हें छोटे इलाकों में कैद कर दिया गया, प्रताड़ित किया गया जिसके कारण इनका व्यवसाय और मवेशियों का चरवाह दोनों ही प्रभावित हुए।
चरगाहों का सुख जाना
- मवेशियों के लिए सूखे चरागाह का अर्थ है, भूख। इनकी भूख के निपटारे के लिए ही चरवाहों का स्वभाव घुमंतू होता है, जो इन्हें हर प्रकार के संकट के लिए तैयार करता है।
- अंग्रेजों द्वारा लगाई गई पाबंदियों के कारण चरगाह न मिल पाने के कारण मवेशियों की भूख और बीमारियों के कारण मृत्यु होने लगी।
- 1930 में जिन मवेशियों की संख्या बेहद ज्यादा थी (मासाइयों के पास गधे- 1,71,000, भेड़- 8,20,000) यह 1933-34 में सूखे के कारण घटकर बिल्कुल आधी हो गई थी।
उपनिवेशवाद के अलग-अलग परिणाम
- मासाइयों का समुदाय दो भागों में विभाजित था, वरिष्ठ जन (जिनका कार्य विचार विमर्श करना और शासन चलाना होता था), योद्धा (इनमें ज्यादा युवा होते थे)।
- योद्धाओं का कार्य होता था, कबीलों की सुरक्षा, दूसरे कबीलों के मवेशियों को छीन कर लाना।
- अंग्रेजी सरकार ने कबीलों के लिए कुछ मुखिया तय कर दिए, जिसके कारण उन्हें अब लड़ाइयों और हमलों की भी इजाजत नहीं थी, जिससे इनकी सत्ता अब कमजोर हो गई।
- अंग्रेजों द्वारा बिठाए गए मुखिया अब धीरे-धीरे पैसा इकट्ठा करने लगे, वे शहरों में बस गए। गांवों में बसे उनके परिवार मवेशियों को चराकर पैसा कमान लगे। उन्हें दो तरह से आमदनी होने लगी।
- जिन चरवाहों की आमदनी केवल मवेशियों से थी, उनके लिए समस्या विकराल थी, अकाल के कारण उनके पास कोई कार्य नहीं होता था, ये किसी तरह शहरों में जाकर मजदूरी करके ही गुजर-बसर कर रहे थे।
- अंग्रेजी सरकार के नियमों से वरिष्ठ जन और योद्धाओं के बीच का फर्क अस्त-व्यस्त हो गया, और चरवाहों के बीच गरीबी और अमीरी का अंतर बढ़ गया।
निष्कर्ष
चरवाहों के जीवन पर आधुनिक नियमों का कई प्रकार से असर हुआ, उनकी सीमा से आर-पार आवाजाही प्रभावित हुई, चरवाहों को चराना मुश्किल होता चला गया। सूखे ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया, मवेशियों की मृत्यु होने लगी। इन सभी कठिनाइयों के बाद भी चरवाहे कई प्रकार के समाधान निकालने का प्रयास करते हैं, और अपने संघर्षों को जारी रखते हैं। आधुनिक समय में चरवाहों के लिए स्थान नहीं है, विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इनके लिए पहाड़ों और सूखे इलाकों में जीवन जी पाना ही उपयुक्त है।
PDF Download Link |
कक्षा 9 इतिहास के अन्य अध्याय के नोट्स | यहाँ से प्राप्त करें |