श्री कृष्ण को दुनिया में चाहने वाले अनगिनत प्राणी है। ऐसे ही अनगिनत लोगों में पशु पक्षी भी आते हैं। ऐसे ही एक पक्षी में शामिल था एक मोर। वह प्यारा सा मोर भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था। उस मोर को भगवान की ही भक्ति में लीन रहना अच्छा लगता था। एक दिन वह मोर उड़ता हुआ गोकुल पहुंचा और जाकर श्री कृष्ण के घर के बाहर खड़ा हो गया।
वह मोर श्री कृष्ण की एक झलक पाना चाहता था। वह श्री कृष्ण का आशीर्वाद भी पाना चाहता था। वह प्रत्येक दिन कृष्ण जी के घर के आगे जाता और एक ही भजन गाता – मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, माँ बाप सांवरिया मेरे!…
अब हर दिन उसकी यह आदत बन गई थी कि उसको कान्हा के घर के आगे जाकर ही बैठना है। कृष्ण हर दिन बाहर आना जाना करते लेकिन पता नहीं क्या हो जाता था कि वह मोर को देख ही नहीं पाते थे। मोर हर दिन भजन गाता था लेकिन श्री कृष्ण मानो जैसे उसके भजन को अनदेखा कर देते थे। अब वह मोर बहुत दुखी रहने लगा था। वह यही सोचता कि प्रभु उसको अनदेखा क्यों कर रहे हैं। उसने ऐसी कौनसी बड़ी गलती कर दी थी जिसके कारण भगवान उससे नाराज थे।
अब पूरा पूरा एक साल बीत गया था। लेकिन अब भी श्री कृष्ण ने मोर के भजन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। आखिरकार एक दिन मोर थक हारकर जोर जोर से रोने लगा। उसकी सिसकती आवाज को किसी ने भी नहीं सुना। तभी वहां से एक मैना गुजर थी। उसने देखा कि मोर जोरों से रो रहा था। वह मोर के समीप पहुंची और पूछा, “क्या हुआ भाई? तुम रो क्यों रहे हो?” मोर ने कहा, “अब मैं तुम्हें क्या बताऊँ बहन। दरअसल मैं बहुत दुखी हो गया हूं। आज पूरा एक साल हो गया है मुझे यहां आते हुए को।
लेकिन श्री कृष्ण ने एक बार भी पलटकर नहीं देखा मुझे। पता नहीं क्या गलती की है मैंने।” मैना बोली, “भाई, तुमनें कोई गलती नहीं की है। मुझे पता है कि तुम बहुत दुखी हो। मुझे लगता है कि तुम्हारे दुख को राधा रानी ही दूर कर सकती है। चलो मैं तुम्हें राधा रानी के घर बरसाना ले चलती हूं।” फिर वह मोर और मैना बरसाना की ओर निकल पड़े।
बरसाना पहुंचकर मोर और मैना राधा रानी के घर पहुंचे। मोर ने बरसाना में आकर भी कृष्ण जी के लिए भजन गया। जबकि मैना ने राधा जी के लिए – श्री राधे राधे, राधे बरसाने वाली राधे… भजन गाया। जैसे ही राधा जी ने कृष्ण जी का भजन सुना, वह भागी दौड़ी हुई बाहर आ गई। राधा जी ने मोर को अपने हाथ उठा लिया।
वह मोर को सहलाते हुए प्यार करने लगी। राधा रानी ने पूछा, “मोर, तुमनें बहुत प्यारा भजन गाया। तुम कहां रहते हो। और मेरे घर के आगे आकर गाने का कारण तो समझाओ।” मोर बोला, “राधा रानी, मैं कृष्ण जी का भक्त हूं। मैं एक साल से कान्हा के भजन गा रहा हूं। लेकिन उन्होंने मुझे एक बार भी नहीं देखा।
यहां तक कि जब मुझे प्यास लगी तो भी उन्होंने मुझे पानी तक नहीं पिलाया।” ऐसा कहते ही वह मोर फिर से रोने लगा। राधा रानी ने कहा, “प्यारे मोर, तुम रोओ मत। अगर तुम्हें श्री कृष्ण का आशीर्वाद चाहिए तो तुम ऐसा करो कि तुम श्री कृष्ण के भजन की जगह राधा रानी का भजन गाकर देखो। हो सकता है यह सुनकर श्री कृष्ण खुद ही चलकर तुम्हारे पास आ जाए।” मोर और मैना ने राधा रानी की बात को एकदम सही माना। अब वह दोबारा गोकुल की ओर उड़ चले।
गोकुल में पहुंचकर मोर ने फिर से श्री कृष्ण के घर की ओर रुख किया। पर इस बार कृष्ण जी का भजन गाने की बजाए मोर ने राधा रानी का भजन गाया – श्री राधे राधे, राधे बरसाने वाली राधे… जैसे ही राधा रानी के नाम का भजन कृष्ण जी के कानों में पड़ा, श्री कृष्ण बाहर की ओर दौड़े चले आए।
बाहर आते ही उन्होंने मोर को अपने हाथ में उठाया और प्यार से पूछा, “प्यारे तोते तुम कहां से आए हो? क्या तुम बरसाना गाँव से आए हो जो राधा रानी का इतना प्यारा भजन गा रहे हो।” मोर ने कहा, “हे भगवन, मैं तो गोकुल गाँव से ही हूँ। और मैं पिछले एक साल से आपके यहां आ रहा हूं। लेकिन आपने मेरी तरफ ग़ौर करके एक बार भी नहीं देखा। ये तो छोड़ो आपने मुझे कभी भी पानी तक नहीं पिलाया।
” श्री कृष्ण ने कहा, “प्रिय मोर, तुम्हारी बात एकदम सही है कि मैंने तुम्हें पानी तक का भी नहीं पूछा। और इसके लिए मैं पाप का भी भागीदार हूं। लेकिन तुम पुण्यात्मा हो। तुमनें सबसे बड़ा पुण्य का काम यह किया कि तुमनें राधा रानी का नाम लिया। इसी पुण्य काम के लिए आज से हमेशा के लिए तुम मेरे दिल में बस गए हो। आज से तुम्हारा स्थान मेरे सिर पर होगा।” फिर कृष्ण जी ने मोर का एक गिरा हुआ पंख उठाया और उसे अपने मुकुट पर लगा लिया। बस उस दिन से लेकर आज तक हम सभी मोर पंख को बहुत पवित्र मानते हैं।
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