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शहीद भगत सिंह पर निबंध (Bhagat Singh Essay in Hindi)

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Ekta Ranga
Last Updated on

भारत में शहीदों को बहुत बड़ा दर्जा दिया जाता है। शहीद अपने आप में एक महान शब्द है। हमारे देश में हमेशा से ही शहीदों का बोलबाला रहा है। हमारे देश में स्वतंत्रता संग्राम हमेशा से ही चलता आया है। हमने अपने इतिहास के पन्नों में स्वतंत्रता संग्राम के बारे में हमेशा से ही पढ़ा है। जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ती हुई शहीद हो गई थी। और हमें वह भी इतिहास याद है जब मंगल पांडे ने 1857 का स्वतंत्रता संग्राम लड़े थे। यह सभी संग्राम इतिहास के पन्नों में दर्ज है।

जब हम बच्चे होते हैं तो हमें बचपन से ही पता चल जाता है कि हम बड़े होकर क्या बनेंगे। बच्चा डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर। इस चीज का पता हमें बच्चे के बचपन की प्रतिक्रियाओं से ही लग जाता है। हर कोई माता पिता का सपना होता है कि वह अपने बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाए। लेकिन कोई भी माँ बाप जल्दी से यह नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे क्रांतिकारी बने। आज हम क्रांतिकारी अर्थात शहीदों के विषय पर निबंध पढ़ेंगे। तो आज का हमारा विषय भगत सिंह पर आधारित है।

प्रस्तावना

यह शब्द थे महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के। बिल्कुल सही कहा था भगत सिंह ने। भले ही अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फांसी दे दी हो। पर भले ही वह दुनिया में नहीं रहे हो, उनकी शहादत जीवन भर लोगों के दिलों में रहेगी। उन्होंने भारत के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब में हुआ था। वह अपनी सच्ची देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके मन के अंदर अंग्रेजों के प्रति खून खोलता था।

शहीद भगत सिंह का जन्म

शहीद भगत सिंह महान क्रांतिकारी थे। उन्होंने देश के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया था। देश के प्रति उनकी आस्था सच्ची थी। 28 सितंबर 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर गांव बंगा में सरदार किशन सिंह के घर पर बेटे ने जन्म लिया। जिस समय भगत सिंह ने जन्म लिया था तब उनके पिता जेल में थे। उनके पिता भी एक सच्चे देशभक्त थे। भगत सिंह का पूरा नाम भगत सिंह संधू था। भगत सिंह की माता का नाम विद्यावती था।

भगत सिंह का बचपन

भगत सिंह का बचपन हम सभी आम बच्चों की तरह नहीं बीता। वह अपने बचपन में अन्य सभी बच्चों से एकदम अलग थे। भगत सिंह का यह जो देश प्रेम था वह उनको अपने परिवार से मिला था। भगत सिंह के पिताजी और दोनों चाचा भी राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह संधू को उनके क्रांतिकारी स्वभाव के चलते अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उनके दोनों चाचा भी इसी कारण के चलते ही गिरफ्तार किए गए थे। भगत सिंह अपने बड़ों को अंग्रेजों के प्रति नफरत करते हुए देखते थे। बस वही से उनके मन में भी अंग्रेजों के प्रति घृणा पैदा हो गई थी।

शहीद भगत सिंह का देश के लिए योगदान

भगतसिंह का भारत की आजादी में बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने युवाओं को अपने काम से बहुत प्रभावित किया। वह उन स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ खिलाफत की थी। उन्होंने 1926 में नौजवान भारत सभा का गठन किया। यह श्रमिकों और किसानों को ब्रिटिश सरकार की क्रूर हुकूमत से स्वयं और भारत को आजाद कराने के गठित हुई थी। उन्होंने लाला लाजपत राय की मृत्यु ( जो जेम्स स्काॅट द्वारा लाठी चार्ज में बहुत घायल हो गए) का बदला ले लिया। उन्होंने अपने साथियों- राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद, के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस अफसर – जाॅन साॅण्डर्स , की हत्या के लिए दी थी।

केंद्र असेंबली में बम

चानन सिंह ( पुलिस हेड काॅन्सटेबल) ने यह सबसे देखा लिया और और उनका पिछा करने लगा। काफी बार रोकने पर वह नहीं रूका तो ना चाहते हुए भी उसपर गोली चलानी पड़ी। मजदूर विरोधी नीतियों से भरा कानून ब्रिटिश सरकार अपनी संसद पर लागू करना चाहती थी। परंतु भगतसिंह और उनका दल यह नहीं चाहता था की ऐसे अत्याचारी कानून पारित हो।

इसके लिए उन्होंने और बटुकेश्र्वर दत्त ने केंद्र असेंबली में ( योजना के अनुसार जहाँ कोई मौजूद नहीं था) बम फेंक दिया। ठीक उसी समय अमर रहने वाला – ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाया। इसके बाद निड़रता से उन्होंने स्वयं को गिरफ्तार करवा लिया। जेल में रहते हुए भगतसिंह ने भारतीय और यूरोपिय कैदियों के बीच हो रहे भेदभाव के लिए आवाज उठाई। लेकिन बड़े ही दुख की बात थी की मात्र 23 वर्ष की आयु में ही उनकी जिंदगी की लौ को क्रूर ब्रिटिश सरकार ने हमेशा के लिए बुझा दिया। भगतसिंह और उनके साथी राजगुरू, सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फाँसी दे दी गई।

शहीद भगत सिंह की शिक्षा

शहीद भगत सिंह एक सच्चे देशभक्त थे। वह देश के महान नायकों में से एक गिने जाते हैं। शहीद भगत सिंह पढ़ाई में भी साधारण छात्र थे। बचपन में उनके पिताजी ने उन्हें बंगा के प्राईमरी स्कूल में दाखिला दिलवाया था। वह जब थोड़े बड़े हुए तो उनके आगे की शिक्षा लाहौर के डीएवी स्कूल से हुई। 1923 में उनके कॉलेज की पढ़ाई नेशनल काॅलेज, लाहौर से हुई थी। पर वह अपने विद्यार्थी जीवन में केवल साधारण स्तर के ही छात्र रहे। उनके मन में पढ़ाई से ज्यादा देशभक्ति की ज्वाला भड़क रही थी। अंग्रेजों के जुल्म के चलते उनका मन पढ़ाई से विमुख हो गया था।

शहीद भगत सिंह का बलिदान

भगतसिंह के बलिदान को कैसे कोई भूल सकता है। वह कितने ही युवाओं की प्रेरणा रहे। ब्रिटिश अत्याचारी शासन के वह सख्त विरूद्ध रहे। उनके बलिदान के महत्व को आज की पीढ़ी भी याद करती है। भगतसिंह के जीवन पर यूं तो खूब फिल्में बनी। परंतु 1965 में मनोज कुमार अभिनीत शहीद फिल्म सबसे प्रसिद्ध और सफल फिल्म रही।

भगतसिंह को नाम शहीद-ए-आजम नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने और उनके जेल के साथियों ने जेल में जाने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत के भेदभाव भरी नीतियों के खिलाफ 116 दिनों की भूख हड़ताल की। इस हड़ताल के चलते क्रांतिकारी जतिन दास की 63 दिन के भूख हड़ताल के चलते मृत्यु हो गई थी।

भगत सिंह का राजनीति में प्रवेश

राजनीति में प्रवेश पाना कोई आसान बात नहीं होती है। बहुत सारे रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है राजनीति के सफर में। लेकिन क्रांतिकारी कुछ भी हासिल कर सकते हैं। यही बात लागू होती है भगत सिंह पर भी। उनका राजनीति में प्रवेश थोड़ा अलग था। उनके माता-पिता यह चाहते थे कि उनकी जल्द से जल्द शादी हो जाए। लेकिन वह नहीं चाहते थे कि उनकी शादी हो। उनका मन केवल अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने की ओर दौड़ता था। भगत सिंह ने सब कुछ त्यागकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के दामन को थाम लिया।

भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई थी?

उस समय स्वतंत्रता संग्राम की लहर हर जगह चल रही थी। हर किसी के सीने में स्वतंत्रता पाने की लहर दौड़ रही थी। भगत सिंह भी उन्हीं लोगों में से एक थे। भगत सिंह ने ठान रखी थी कि वह अंग्रेजी हुकूमत को भारत से उखाड़ कर रहेंगे। इसी कारण के चलते भगत सिंह ने एक बड़ी योजना बनाई। भगत सिंह ने अपने दो साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर 1928 में ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी। उस पुलिस अधिकारी की मौके पर ही मौत हो गई। इस कांड के बाद एक और कांड हुआ। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने दोस्त बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त) के साथ मिलकर सेंट्रल असेंबली पर बम फेंकने का काम किया। इन दो बड़ी घटनाओं के चलते भगत सिंह को फांसी दे दी गई थी।

भगत सिंह का अंतिम संदेश क्या था?

भगत सिंह को उनके बलिदान के लिए याद किया जाता है। उनका अंतिम संदेश था –

यदि मैं जीवित और मुक्त रह पाता तो शायद मुझे उन कार्यों को पूरा करने का अवसर मिल जाता और मैं अपनी इच्छाओं को पूरा कर लेता। इसके अलावा फंदे से बचने का कोई मोह मेरे मन में कभी नहीं आया।

मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन हो सकता है? इन दिनों मुझे अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। अब मैं बड़ी बेसब्री से फाइनल टेस्ट का इंतजार कर रहा हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि यह और करीब आए।

भगत सिंह पर निबंध 200 शब्दों में

भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी और पराक्रमी नेता था। भगत सिंह की शहादत को आज हर कोई याद करता है। भगत सिंह एक शूरवीर थे। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। उनकी माता का नाम विद्यावती कौर था।

भगत सिंह का परिवार आर्य समाज के सिद्धांतों को मानता था। भगत सिंह के माता-पिता दयानन्द सरस्वती को अपना आदर्श मानते थे। उनका परिवार भी क्रांतिकारी था। उनके पिता सरदार किशन सिंह संधू क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। इसी के चलते उनके पिता और चाचा कई बार जेल भी गए थे। यहां तक कि जब भगत सिंह पैदा हुए थे तब भी उनके पिता और चाचा को जेल में बंद कर रखा था।

उनकी शिक्षा भी ठीक हुई थी। वह पढ़ाई में औसत विद्यार्थी के जैसे थे। उनके मन पढ़ाई से हटकर स्वतंत्रता संग्राम में चला गया। भगत सिंह की हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला पर भी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने भारत के लिए खूब बलिदान दिए थे। वह बहुत मेहनती थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई।

भगत सिंह पर 10 लाइनें

  1. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब में हुआ था
  2. भगत सिंह को अपने देश से बड़ा प्यार था।
  3. 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई।
  4. वह पढ़ाई में होशियार बालक थे।
  5. भगत सिंह ने अपने जीवन में शादी ही नहीं की थी।
  6. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। उनकी माता का नाम विद्यावती कौर था।
  7. उनका एक नारा इंकलाब जिंदाबाद बहुत ही ज्यादा चर्चित हो गया था।
  8. शहीद भगत सिंह को एक महान क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता है।
  9. भगत सिंह ने जो बलिदान देश के लिए दिया था वह आज भी प्रेरणा के रूप में कायम है।
  10. एक शहीद की जेल नोटबुक उनकी खुद की कृति थी।

निष्कर्ष

तो आज के इस निबंध के माध्यम से आपने शहीद भगत सिंह के जीवन को अच्छे से जाना। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह निबंध पसंद आया होगा।

भगत सिंह पर आधारित FAQs

भगत सिंह के गुरु का नाम क्या था?

भगत सिंह के गुरु का नाम करतार सिंह सराभा था। 1912 से लेकर 1916 तक करतार सिंह ने हर तरह के आंदोलन में हिस्सा लिया था।

भगत सिंह को फांसी देने वाला जल्लाद कौन था?

भगत सिंह को फांसी देने वाला मसी जल्लाद था। वह लाहौर के शाहदरा गाँव से आया था।

भगत सिंह को फांसी सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम क्या था?

भगत सिंह को फांसी सुनाने वाले न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था।

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