इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी भारत लोग और अर्थव्यवस्था के अध्याय- 3 “भूसंसाधन तथा कृषि” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-2 Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय- 3 “भूसंसाधन तथा कृषि“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भारत लोग और अर्थव्यवस्था |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | “भूसंसाधन तथा कृषि” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय- 3 “भूसंसाधन तथा कृषि”
भू-उपयोग का वर्गीकरण
- मनुष्य भूमि का उपयोग कृषि, चरागाह, इमारतें, सड़क, खेल के मैदान के साथ-साथ उद्योगों को स्थापित करने के लिए करता है।
- भू-उपयोग से संबंधित अभिलेख भूराजस्व विभाग रखता है।
- भारतीय प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग को दिया गया है।
- भूराजस्व अभिलेख द्वारा भू-उपयोग को निम्नलिखित नौ वर्गों में बाँटा गया है-
- वनों के अधीन क्षेत्र
- बंजर अथवा व्यर्थ भूमि
- गैर कृषि कार्यों में सम्मिलित भूमि
- स्थानीय चरागाह क्षेत्र
- विभिन्न तरु-फसलों और उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र
- कृषि योग्य भूमि
- वर्तमान परती भूमि
- पुरातन परती भूमि
- निवल बोया क्षेत्र
भारत में भू-उपयोग परिवर्तन
- किसी भी क्षेत्र में भू-उपयोग वहाँ की आर्थिक क्रियाओं की प्रवृति पर निर्भर करती है।
- जैसे-जैसे समय में परिवर्तन होता है वैसे-वैसे आर्थिक क्रियाओं में भी परिवर्तन होता है।
- भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
- अर्थव्यवस्था का आकार: अर्थव्यवस्था का आकार उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के संदर्भ में समय के साथ परिवर्तित होता है। जब समय के साथ कृषि पर दबाव बढ़ता है तब सीमांत भूमि का भी उपयोग होने लगता है।
- समय के साथ अर्थव्यवस्था की संरचना: प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र में बदलते समय के साथ परिवर्तन तेजी से होता है। यही कारण है कि अब शहरों के आस-पास की कृषि भूमि को इमारतों के लिए उपयोग किया जा रहा है।
- अर्थव्यवस्था में कृषि क्रियाकलाप की भूमिका: अर्थव्यवस्था में कृषि क्रियाकलापों का योगदान भले ही कम हो गया है लेकिन भूमि पर इनका दबाव कम नहीं हुआ है। इसके पीछे मुख्य दो कारण हैं-
- विकासशील देशों में कृषि पर निर्भर व्यक्तियों का अनुपात धीरे-धीरे घटता है, जबकि कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तीव्र गति से कम होता है।
- कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या में हर दिन वृद्धि होना।
भू-उपयोग में वृद्धि के कारण
वन क्षेत्रों, गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि, वर्तमान परती भूमि और निवल क्षेत्र में बोए गए अनुपात में वृद्धि के कारण निम्न हैं-
- गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि में वृद्धि दर के अधिक होने का मुख्य कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना है।
- वन क्षेत्र में वृद्धि वास्तविक वन आच्छदन क्षेत्र के कारण नहीं बल्कि सीमांकन के कारण हुई है।
- वर्तमान परती भूमि में वृद्धि परती क्षेत्र में समयानुसार काफी उतार-चढ़ाव की प्रवृति और फसल-चक्र पर निर्भता के कारण हुई है।
- निवल बोए गए क्षेत्र में वृद्धि की वजह कृषि योग्य व्यर्थ भूमि का उपयोग करना है।
- कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव और गैर-कानूनी तरीके से कृषि करने के कारण चरागाह भूमि में कमी आई है।
भारत में कृषि भू-उपयोग
- भू-संसाधनों के महत्व को वे लोग अधिक अच्छे से जानते हैं जिनकी आजीविका कृषि पर निर्भर है।
- कृषि क्षेत्र में भूमि का योगदान अन्य दो क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनता का जुड़ाव प्रत्यक्ष रूप से गरीबी से है।
- भूमि की गुणवत्ता कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है जबकि अन्य दो क्षेत्रों में ऐसा नहीं है।
- गाँवों में भू-स्वामित्व का आर्थिक मूल्य के अलावा सामाजिक मूल्य भी है क्योंकि इससे समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है।
- कृषि गहनता= सकल बोया गया क्षेत्र/निवल बोया गया क्षेत्र x 100 फसल गहनता की गणना करने का सूत्र है।
भारतीय फसल ऋतुएँ
भारत के उत्तरी और आंतरिक भागों में पाई जाने वाली मुख्य तीन फसलों के बारे में जानने हेतु आप नीचे दिए गए टेबल को देख सकते हैं-
क्रम संख्या | कृषि ऋतु | उत्तरी भारत राज्य की प्रमुख फसलें | दक्षिणी राज्य की प्रमुख फसलें |
1. | खरीफ (जून से सितंबर) | चावल, कपास, बाजरा, मक्का, ज्वार, अरहर | चावल, मक्का, रागी, ज्वार, मूँगफली |
2. | रबी (अक्टूबर से मार्च) | गेहूँ, चना, तोरई, सरसों, जौ | चावल, मक्का, रागी, मूँगफली |
3. | जायद (अप्रैल से जून) | वनस्पति, सब्जियाँ, फल, चारा फसलें | चावल, सब्जियाँ, चारा फसलें |
कृषि के प्रकार
आर्द्रता के मुख्य स्त्रोत के आधार पर कृषि के दो प्रकार निम्नलिखित हैं-
सिंचित कृषि
- सिंचित कृषि में सिचाई के आधार पर दो वर्ग किए गए हैं।
- रक्षित सिंचाई कृषि: इस कृषि का उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट नहीं होने देना है। जल की कमी को वर्षा के अलावा सिंचाई द्वारा भी पूरा किया जाता है।
- उत्पादक सिंचाई कृषि: इसका उद्देश्य फसलों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है। इसमें जल निवेश रक्षित सिंचाई कृषि की तुलना में अधिक होती है।
वर्षा निर्भर कृषि
- वर्षा निर्भर कृषि को आर्द्रता मात्रा के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-
- शुष्क भूमि कृषि: अब शुष्क भूमि कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 सेंटीमीटर से कम होती है। रागी, बाजरा, मूँग, चना, तथा चारा फसलें ऐसी हैं जो शुष्क भूमि कृषि के अंतर्गत उगाई जाती हैं।
- आर्द्र भूमि कृषि: इसमें वर्षा ऋतु में वर्षा जल पौधे की जरूरत से अधिक हो जाता है। ऐसे क्षेत्रों में उन फसलों को उगाया जाता है जिन्हें पानी आवश्यकता अधिक होती है जैसे कि चावल, जूट, गन्ना आदि।
भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें
खाद्यान्न फसलें
- अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को दो वर्गों में बाँटा गया है-
- अनाज
- भारत में लगभग 54% भाग पर अनाज का उत्पादन होता है।
- भारत विश्व का लगभग 11% अनाज उत्पन्न करके अमेरिका तथा चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।
- भारत में विभिन्न प्रकार के अनाजों का उत्पादन किया जाता है, जिन्हें उत्तम अनाज (चावल, गेहूँ) और मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी) के नाम से जाना जाता है।
- अधिकांश भारतीय चावल का सेवन करते हैं। 3000 से भी अधिक चावल की किस्में पाई जाती हैं।
- चावल की खेती सबसे ज़्यादा पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में की जाती है।
- हरित क्रांति के दौरान हरियाणा और पंजाब के सिंचित क्षेत्रों में चावल की कृषि शुरू की गई थी।
- गेहूँ भारत की दूसरी प्रमुख फसल है। भारत विश्व का 12.8% गेहूँ उत्पादन करता है। यहाँ कुल बोए गए क्षेत्र में से 14% भाग में सिर्फ गेहूँ की खेती की जाती है।
- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य माने जाते हैं।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र में से 16.5% हिस्से में मोठे अनाज बोए जाते हैं, जिसमें से 5.3% भाग पर ज्वार बोया जाता है।
- पूरे देश में महाराष्ट्र में ज्वार का उत्पादन सबसे अधिक होता है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी ज्वार का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है।
- बाजरा देश के कुल बोए गए क्षेत्र के लगभग 5.2% भाग पर बोया जाता है।
- बाजरे का अधिक उत्पादन महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में किया जाता है।
- मक्के की खेती कुल बोए गए क्षेत्र के 3.6% भाग में की जाती है।
- मक्का खाद्य और चारा दोनों तरह की फसल है।
- मक्के की खेती पूर्वी एवं उत्तरी-पूर्वी भाग को छोड़कर लगभग सभी भागों में की जाती है मुख्य रूप से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में।
- दालें
- प्रोटीन की अधिक मात्रा होने के कारण दालें शाकाहारी भोजन का मुख्य स्त्रोत हैं।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र में लगभग 11% हिस्से में दालों की खेती होती है।
- चना और अरहर भारत की प्रमुख दालें हैं। जिनक वर्णन निम्न प्रकार है-
- चना
- चना उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की वर्षा आधारित फसल है। यह फसल रबी की ऋतु में बोई जाती है।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र के सिर्फ 2.8% भाग में चने की खेती की जाती है।
- मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं राजस्थान प्रमुख चना उत्पादक राज्य हैं।
- इस फसल को उगाने के लिए वर्षा की एक-दो बौछारों या एक-दो बार सिंचाई करने की जरूरत होती है।
- अरहर
- अरहर भारत की दूसरी मुख्य दाल फसल है।
- भारत में इसे लाल चना और पिजन पी. के नाम से भी जाना जाता है।
- कुल बोए गए क्षेत्र के 2% भाग में चने की खेती की जाती है।
- देश में अरहर के कुल उत्पादन का लहभग एक-तिहाई हिस्सा महाराष्ट्र से आता है।
- उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।
- चना
तिलहन की फसलें
- तिलहन फसलों की खेती मुख्य रूप से तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र में लगभग 14% भाग में तिलहन फसलों की खेती की जाती है।
- भारत की मुख्य तिलहन फसलें निम्नलिखित हैं-
- मूँगफली
- भारत विश्व का 19.5% भाग मूँगफली का उत्पादन करता है।
- यह शुष्क प्रदेशों में उगाई जाने वाली वर्षा आधारित खरीफ फसल है।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्रों के लगभग 3.6% भाग पर मूँगफली की खेती की जाती है।
- गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र मुख्य मूँगफली उत्पादक राज्य हैं।
- तोरिया और सरसों
- इसमें राई, सरसों, तोरिया और तारामीरा आदि तिलहन फसलों को शामिल किया जाता है।
- यह फसल मुख्य रूप से रबी ऋतु में बोई जाती है।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र के 2.5% भाग में इस फसल की खेती होती है।
- कुल उत्पादन के एक-तिहाई भाग में राजस्थान की हिस्सेदारी प्रमुख है।
- हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
- अन्य तिलहन
- अन्य तिलहन फसलों में सोयाबीन और सूरजमुखी को शामिल किया जाता है।
- मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र ऐसे दो राज्य हैं जो मिलकर देश का लगभग 90% सोयाबीन उत्पादन करते हैं।
- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र मुख्य सूरजमुखी उत्पादक राज्य हैं।
- सिंचित क्षेत्रों में सूरजमुखी का उत्पादन अधिक होता है।
- मूँगफली
रेशेदार फसलें
- रेशेदार फसलों से प्राप्त रेशों से कपड़ा, थैला और बोरा जैसी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
- रेशेदार फसलों के दो प्रकार निम्नलिखित हैं-
- कपास
- कपास देश के अर्ध-शुष्क भागों में खरीफ ऋतु में बोई जाने वाली फसल है।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र के 4.7% हिस्से में कपास बोया जाता है।
- अमेरिकन के उत्तर-पश्चिमी भाग में कपास को ‘नरमा’ कहा जाता है।
- गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा कपास के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
- वर्षा पर निर्भर होने के कारण महाराष्ट्र की उत्पादकता सिंचाईं सुविधा वाले राज्यों के मुकाबले कम है।
- जूट
- इस फसल का उत्पादन मोटे वस्त्र, थैले, बोरे और अन्य सजावटी सामान बनाने के लिए किया जाता है।
- विभाजन के बाद देश का विशाल जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान में चला गया।
- वर्तमान भारत विश्व का लगभग 60% जूट उत्पादन करता है जिसमें से तीन-चौथाई हिस्सेदारी पश्चिम बंगाल की है।
- बिहार और असम प्रमुख दो जूट उत्पादक राज्य हैं।
- भारत के कुल बोए गए क्षेत्र के सिर्फ 0.5% भाग पर ही जूट की खेती की जाती है।
- कपास
अन्य फसलें
- गन्ना, चाय और कॉफी को भारत की अन्य फसलों में शामिल किया गया है।
- भारत में उगाई जाने वाली मुख्य अन्य फसलों का वर्णन निम्न प्रकार है-
- गन्ना
- उष्ण कटिबंधीय फसल होने के कारण गन्ना वर्षा आधारित क्षेत्रों में आर्द्र तथा अर्ध-आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में बोई जाती है।
- गन्ने की खेती उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों में की जाती है।
- विश्व के लगभग 19% गन्ने का उत्पादन भारत में होता है।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है।
- देश में 2.4% भाग में गन्ने की खेती होती है।
- उत्तर प्रदेश में देश के कुल गन्ना उत्पादन का 40% उत्पादन होता है।
- चाय
- चाय एक रोपण कृषि है जिसका प्रयोग पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है।
- चाय की पत्तियों में कैफीन एवं टैनिन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
- भारत में चाय की खेती वर्ष 1840 में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में शुरू की गई थी जोकि अब देश का प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र बन चुका है।
- भारत विश्व का लगभग 21.22% चाय उत्पादन करता है।
- चाय-निर्यात करने वाले देशों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है।
- असम कुल शस्य क्षेत्र के 53.2% भाग पर सिर्फ चाय की खेती की जाती है।
- कॉफी
- कॉफी उष्ण कटिबंधीय हिस्सों में की जाने वाली एक रोपण कृषि है।
- अरेबिका, रोबस्ता और लिबेरिका कॉफी की मुख्य तीन किस्में हैं।
- भारत में उत्तम किस्म की ‘अरेबिका’ कॉफी का उत्पादन किया जाता है जिसकी माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सबसे अधिक है।
- विश्व के कुल कॉफी का 3.17% उत्पादन भारत में होता है।
- भारत का विश्व में कॉफी उत्पादक के रूप में आठवाँ स्थान है।
- कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्यों में कॉफी की कृषि की जाती है।
- गन्ना
भारत में कृषि विकास
- स्वतंत्रता से पहले कृषि महज जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था थी।
- 20वीं शताब्दी के मध्य तक अकाल और सूखे के कारण भारतीय कृषि की स्थिति दयनीय हो गई थी।
- 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो बार अकाल का सामना करने के कारण देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ था।
- कृषि विकास के लिए अपनाई गई नीतियों के फलस्वरूप उत्पादन में हुई वृद्धि ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी जाती है।
- स्वतंत्रता के बाद सरकार ने खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए थे-
- व्यापारिक फसलों के स्थान पर खाद्यान्न फसलों को उगाने पर जोर दिया।
- कृषि गहनता को बढ़ावा दिया।
- कृषि योग्य बंजर भूमि और परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया।
भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ
भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ निम्न हैं-
- मानसून पर निर्भरता
- कम उत्पादकता
- वित्तीय संसाधनों की बाध्यताएँ और ऋणग्रस्तता
- भूमि स्तर के सुधारों में कमी
- छोटे और विखंडित खेत
- वाणिज्यीकरण का अभाव
- व्यापक अल्प रोजगारी
- भूमि संसाधनों का निम्नीकरण
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