Class 8 History Ch-1 “कैसे, कब और कहाँ” Notes In Hindi

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इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी “हमारे अतीत-III” के अध्याय- 1 “कैसे, कब और कहाँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 8 History Chapter-1 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-1 “कैसे, कब और कहाँ“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाआठवीं (8वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकहमारे अतीत-III (इतिहास)
अध्याय नंबरएक (1)
अध्याय का नाम“कैसे, कब और कहाँ”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- हमारे अतीत-III (इतिहास)
अध्याय- 1 “कैसे, कब और कहाँ”

इतिहास में तारीखों का महत्व

  • कब कौन-सा राजा जनता पर शासन कर रहा था और कौन-सा युद्ध कब हुआ इत्यादि मुख्य ऐतिहासिक बातों की जानकारी इन्हीं तारीखों से पता चलती है।
  • इहिसास विभिन्न समय पर आने वाले बदलावों का विवरण देता है।
  • तारीखें अतीत और वर्तमान के अंतर को स्पष्ट करती हैं।
  • पहले लोग कौन से समय में अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करते थे इसकी जानकारी भी अतीत से प्राप्त होती है।
  • समय को हमेशा साल और महीने की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है अर्थात् अनेक ऐसी प्रक्रियाएँ होती हैं जिनकी कोई निश्चित तिथि नहीं होती है।
  • राष्ट्रीय आंदोलन किस दिन से शुरू हुआ और समाज में बदलाव कौन से दिन आया आदि जैसी बातों का अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है।
  • किसी राज्य के जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण बदलावों की तिथियों को इतिहासकार आसानी से दर्ज कर सकते हैं क्योंकि उन घटनाओं की तारीख निश्चित होती है जैसे कि राजा के जन्म की तारीख, उसके राज्याभिषेक की तारीख और उसने जितने भी युद्ध लड़े उनकी तिथि आदि।
  • उपरोक्त घटनाओं की निश्चित तिथि होने के कारण उनका महत्व इतिहास में लंबे समय तक बना रहता है।
  • इतिहासकार पहले के लोगों के जीवन, उस समय के समाज और बाजार जैसे विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करने लगे हैं।

कुछ तारीखों को महत्वपूर्ण मानने के पैमाने

  • ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा जो इतिहास लिखा गया था उसमें से गवर्नर-जनरल का शासनकाल महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • इतिहास के अलग-अलग अध्यायों में अलग-अलग गवर्नर-जनरलों का वर्णन किया गया है।
  • इतिहास की पुस्तकों में तारीखों का महत्व अधिकारियों, उनकी गतिविधियों, नीतियों और उपलब्धियों के आधार पर निश्चित किया जाता था।
  • अधिकारियों के जीवन का क्रम ब्रिटिश भारत में विभिन्न अध्यायों का विषय बन जाता था।
  • महत्वपूर्ण विषयों में उन्हीं घटनाओं को अधिक महत्व दिया जाता है, जो उस समय की कहानी को स्पष्ट करते थे।
  • ब्रिटिश काल में भारतीय लोगों की गतविधियों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था।

काल खंड कैसे तय करते हैं?

  • वर्ष 1817 में जेम्स मिल ने तीन विशाल खंडों में ‘ब्रिटिश भारत का इतिहास’ नाम की पुस्तक लिखी थी।
  • ‘ब्रिटिश भारत का इतिहास’ पुस्तक को जेम्स मिल ने तीन खंडों हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश में बाँटा था, जिसे बहुत से लोगों ने स्वीकार कर लिया।
  • जेम्स के अनुसार सभी एशिआई समाज सभ्यता के मामले में यूरोप से काफी पीछे हैं।
  • पुस्तक में बताया गया है कि भारत पर ब्रिटिश शासन से पहले हिंदू व मुसलमान तानाशाहों का शासन था और हर तरफ धार्मिक विवादों, झगड़ों तथा अंधविश्वासों को अधिक महत्व दिया जा रहा था।
  • जेम्स मिल का मानना था कि ब्रिटिश शासन ही भारत को सभ्यता की राह पर ले सकता था और उनकी मदद से ही भारत प्रगति कर सकता था।
  • प्राचीन भारत में शासकों के धर्म में एकरूपता नहीं पाइ जाती है।
  • भारतीय इतिहास को मुख्य रूप से निम्न तीन कालों में बाँटा गया है-
    1. प्राचीन काल
    2. मध्यकाल
    3. आधुनिक काल
  • उपरोक्त कालों को बाँटने की समझ पश्चिमी सभ्यता से आई थी।

इतिहास में औपनिवेशिक युग

  • ब्रिटेन ने भारत पर लंबे समय तक शासन किया इसलिए उस समय को औपनिवेशिक युग कहते हैं।
  • ब्रिटेन ने पहले भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर नियंत्रण स्थापित किया था।
  • जब एक देश पर दूसरे देश के दबदबे से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते हैं, तो इस तरह की प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहते हैं।
  • औपनिवेशिक युग में जो बदलाव आए उनका प्रभाव सभी वर्गों और समूहों पर एक समान नहीं पड़ा था।
इतिहास लिखने के लिए इतिहासकारों द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न स्त्रोत

इतिहास लिखने के लिए इतिहासकारों द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न स्त्रोतों का वर्णन इस प्रकार है-

प्रशासनिक अभिलेख (सरकारी रिकॉर्ड)

  • पश्चिमी शासन द्वारा तैयार किए गए सरकारी अभिलेख या दस्तावेज इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण साधन हैं।
  • अभिलेखों में शासकों द्वारा दिए गए निर्देश, योजनाएँ, नीतिगत फैसले, सहमति और जाँच इत्यादि दर्ज किए गए होते हैं।
  • अंग्रेजों ने सभी महत्वपूर्ण अभिलेखों व दस्तावेजों को संभालकर रखने के लिए अभिलेखक कक्ष बनवाए थे।
  • महत्वपूर्ण अभिलेखों व दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए अभिलेखागार और संग्रहालय बनाए गए थे।
  • 19वीं सदी में प्रशासनिक शाखाओं को भेजे गए पत्र और ज्ञापन भी अभिलेखागारों में पाए जाते हैं।
  • 19वीं सदी के शुरुआत में पुराने दस्तावेजों की नकल तैयार की जाती थी।
  • 19वीं सदी के मध्य तक छपाई तकनीक के पूर्ण रूप से अस्तित्व में आते ही सरकारी विभागों के दस्तावेजों की अनेक प्रतियाँ आसानी से छापी जाने लगीं।

सभी सर्वेक्षण

  • ब्रिटिश काल में सर्वेक्षण को अधिक महत्व दिया जाता था क्योंकि अंग्रेजों का मानना था कि किसी भी देश पर शासन करने के लिए उसका जाँच करना बेहद जरूरी है।
  • किसी भी देश का नक्शा तैयार करने के लिए बड़े-बड़े सर्वेक्षण किए जाते हैं।
  • 19वीं सदी के आखिर में प्रत्येके दस वर्ष में जनगणना की शुरुआत हो चुकी थी।
  • उस दौरान वनस्पतिक, प्राणि वैज्ञानिक, पुरातत्वीय, मानवशास्त्रीय, वन इत्यादि जैसे सर्वेक्षण भी किए जाते थे।

रिकॉडर्स के विशाल भंडार

  • सरकारी रिकॉडर्स से बहुत सी जानकारियाँ मिलती हैं क्योंकि इससे सरकारी अफसरों के नजरिए का पता चलता है।
  • इससे यह पता नहीं चलता है कि बाकी देशों के लोग क्या सोचते थे और वे जो भी करते थे उसके पीछे वजह क्या होती थी।
  • लोगों द्वारा लिखी गई साहित्यिक पुस्तकें और अखबार भी ऐतिहासिक स्त्रोत का विशेष हिस्सा हैं।
  • उस दौरान नेता अपने विचार फैलाने और उपन्यासकार अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए लिख रहे थे।
  • पुस्तकों में लिखे अनुभव पढ़े-लिखे वर्गों के थे इसलिए उन पुस्तकों में आम लोगों, मजदूरों और गरीबों के दैनिक जीवन का विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है।
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