Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

मीराबाई का जीवन परिचय (Mirabai Biography in Hindi)

Photo of author
Ekta Ranga
Last Updated on

“…..आ आ आ आ

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ,

पायो जी मैंने वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरुवस्तु

अमोलिक दी मेरे सतगुरुकृपा कर अपनायो

यह गाना सुर की देवी श्री लता मंगेशकर द्वारा गाया गया सबसे प्रसिद्ध मीरा का भजन है। मीरा बाई जैसी महान संत को आखिर कौन नहीं जानता। कृष्ण भक्त मीरा बाई का जन्म पाली जिले के कुडकी गांव में हुआ। वह मेवाड़ की रानी थी। वह एक कवियत्री थी। उन्होंने काफी सारी कृष्ण जी पर कविताओं की रचना की। मीरा बाई भगवान कृष्ण जी की सबसे बड़ी भक्त थीं। उनके द्वारा रचित भजनों का भक्ति आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान रहा।

मीराबाई की जीवनी (Biography of Meerabai in Hindi)

हमारे देश बहुत बड़ा और बड़ा निराला है। इस देश का इतिहास भी काफी खास रहा है। मध्यकालीन भारत का इतिहास भी बहुत कुछ कहता है। यही वह सुनहरा युग था जब हमारे देश में भक्ति आंदोलन की शुरूआत हुई थी। इस आंदोलन की शुरूआत दक्षिण भारत से हुई जो बाद में सब जगह फैल गई। इसी युग में बहुत से भक्तों ने भक्ति की लहर फैला दी थी जैसे कालिदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि। भक्ति में सचमुच शक्ति होती है। भक्ति एक मनुष्य को बुरी से बुरी परिस्थितियों से निकाल सकती है। आज हम एक ऐसी ही कृष्ण भक्त के जीवन के बारे में जानेंगे। हम बात कर रहे हैं मीराबाई की। मीराबाई को महान कृष्ण भक्त माना जाता है। तो आइए हम जानते हैं मीराबाई की जीवनी (meera bai ka jeevan parichay) हिंदी में।

मीराबाई का जीवन परिचय

राजस्थान का मेड़ता शहर बहुत खूबसूरत शहर है। यह शहर बहुत पुराना है। इस शहर को मीराबाई के शहर के रूप में भी जाना जाता है। राठौड़ रतन सिंह और वीर कुमारी के घर पर सन 1498 में एक सुंदर पुत्री ने जन्म लिया। राठौड़ रतन सिंह जागीरदार के तौर पर काम करते थे। जब मीराबाई छोटी सी थी तब उनकी माता वीर कुमारी का निधन हो गया। मीराबाई छोटी सी उम्र में ही माँ के प्रेम से वंचित हो गई थी। मीराबाई को उनके दादा और दादी ने संभाला था। वह अपनी दादी के प्रेम के छांव में ही बड़ी हुई थी। क्योंकि उनकी दादी भी कृष्ण की परम भक्त थी इसलिए मीराबाई भी कृष्ण भक्ति में गहराई से डूब गई थी।

ये भी पढ़ें –

गोपालदास नीरज का जीवन परिचय
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
अमीर खुसरो का जीवन परिचय
मीराबाई का जीवन परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

मीराबाई के बचपन की कहानी

मीराबाई का बचपन अपने दादा दादी के साथ बीता। वह अपनी दादी के साथ उठती बैठती थी। उनकी दादी बड़ी ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। वह उन्हें कृष्ण लीलाओं के बारे में बताया करती थी। मीराबाई कृष्ण लीलाओं को बड़ा ध्यान लगाकर सुना करती थी। वह बचपन से ही धार्मिक स्वभाव की हो गई थी।

उनके बचपन को लेकर एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है। एक बार की बात है जब एक बारात मीराबाई के घर के आगे से निकल रही थी। उस बारात का दूल्हा बहुत ही सुंदर था। वह घोड़े पर बैठा था। उस बारात को देखकर मीराबाई बहुत प्रसन्न हुई। मीराबाई ने सोचा काश मेरा दूल्हा भी इतना ही सुंदर हो।

इसी सोच के साथ मीराबाई ने अपनी दादी से पूछा कि उनका दूल्हा कहां है? तो उनकी दादी ने झट से भगवान श्रीकृष्ण के सामने इशारा करते हुए कहा कि यही तुम्हारा पति है। बस उनकी दादी का यह कहना हुआ और मीराबाई ने श्री कृष्ण को जीवनभर के लिए अपना पति मान लिया।

मीराबाई का भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम

मीराबाई श्री कृष्ण की परम भक्त थी। वह ठाकुर जी को बहुत प्रेम करती थी। वह अपने पास हर समय कृष्ण जी की मूर्ति रखा करती थी। वह सुबह बहुत जल्दी उठ जाती थी। वह ठाकुर जी को भोग लगाया करती थी। वह दिन रात प्रभु के स्मरण में रहती थी। मीराबाई श्री कृष्ण के ध्यान में इतनी अधिक डूब जाती थी कि उनको यह पता भी नहीं चलता था कि कब दिन से रात हो गई।

वह भगवान की भक्ति में खाने-पीने की सुध बुध भी खो बैठती थी। वह प्रत्येक व्यक्ति में श्री कृष्ण को ढूँढा करती थी। मीराबाई का संसार श्री कृष्ण में बसता था। उनको कोई भी तरह की मोह माया से प्रेम नहीं था। वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होना चाहती थी।

मीराबाई का विवाह

मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज से 1516 में हुआ। उनका विवाह उनके इच्छा के विरुद्ध हुआ था। भोजराज राणा सांगा के सबसे वरिष्ठ पुत्र थे। कहा जाता है कि जब उनकी शादी मीराबाई से हुई तो उनका यह नहीं मालूम था कि वह आध्यात्मिकता में पूर्ण रूप से ओत-प्रोत हुए हुई हैं।

कहा जाता है कि मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण को ही अपना पति मान लिया था। लेकिन यूं नहीं की भोजराज ने मीराबाई के श्री कृष्ण प्रति इस वात्सल्य पूर्ण स्वभाव का विरोध किया। बल्कि उन्होंने इसे स्वीकार किया और 1526 के एक युद्ध में अपनी मृत्यु तक वह मीराबाई के घनिष्ठ मित्र बने रहे। हालांकि अपने मित्र रूपी पति को खोने पर मीराबाई को बहुत दुख पहुंचा।

मीराबाई को मारने के प्रयास

मीराबाई के जीवन में दुख की घड़ी उस समय आई जब उनके पति और उनके सच्चे दोस्त राजा भोजराज की मृत्यु हो गई। भोजराज की मृत्यु के पश्चात उनके उपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मीराबाई छोटी उम्र में ही विधवा हो गई थी। सास-ससुर और देवर ने उनको खूब ताने दिए। ससुरालवालों ने मीराबाई पर सती होने के लिए खूब दबाव डाला। पर मीराबाई ने हार नहीं मानी। वह सती हुई ही नहीं।

ससुरालवालों ने कहा कि मीराबाई लज्जा और परंपरा को तोड़ रही है। मीराबाई साधु संतों के साथ उठती बैठती थी। यह सब बातें मीराबाई के देवर राणा रत्नसिंह को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थी। राणा रत्नसिंह कहते थे कि एक राजघराने की महिला को आम जनता के साथ उठना बैठना शोभा नहीं देता। मीराबाई ने राणा रत्नसिंह की बातों की अवहेलना कर दी। सबसे पहले मीराबाई को मारने के लिए जहर का प्याला देकर भेजा गया। उसके बाद मीराबाई को मारने के लिए सांप भी भेजे गए। लेकिन उन्हें मारने के यह सारे प्रयास विफल गए। मीराबाई के ऊपर श्री कृष्ण की कृपा थी। उनको श्री कृष्ण ने हर बार बचा लिया।

मीराबाई के दोहे

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई।जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।

भावार्थ- इस दोहे में मीराबाई जी कहती हैं कि- मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं जिसने पर्वत को उंगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया है। इसके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिसके सिर पर मोर पंख का मुकुट हैं वही मेरे पति हैं।

मन रे परसी हरी के चरण सुभाग शीतल कमल कोमल त्रिविध ज्वालाहरण जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरणजिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करणजिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण मीरा मगन भाई लिसतें तो मीरा मगनभाई।

भावार्थ- इस दोहे में मीराबाई जी कहती हैं कि उनका मन हमेशा ही श्री कृष्ण के चरणों में लीन हैं। ऐसे कृष्ण जिनका मन शीतल हैं। जिनके चरणों में ध्रुव हैं। जिनके चरणों में पूरा ब्रम्हांड हैं पृथ्वी हैं और जिनके चरणों में शेष नाग हैं। जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। ये दासी मीरा का मन उसी हरी के चरणों, उनकी लीलाओं में लगा हुआ हैं।

मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड मतवारो बादल आयो रे लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे।।

इस दोहे के माध्यम से मीराबाई कहती हैं कि उनके सपने में श्री कृष्ण दूल्हे राजा बनकर पधारे। सपने में तोरण बंधा था जिसे हाथो से तोड़ा दीनानाथ ने। सपने में मीरा ने कृष्ण के पैर छुये और सुहागन बनी।

ऐरी म्हां दरद दिवाणीम्हारा दरद न जाण्यौ कोय घायल री गत घायल जाण्यौ हिवडो अगण सन्जोय।। जौहर की गत जौहरी जाणै क्या जाण्यौ जण खोय मीरां री प्रभु पीर मिटांगा जो वैद साँवरो होय।।

भावार्थ – ऐ री सखि मुझे तो प्रभु के प्रेम की पीड़ा भी पागल कर जाती है। इस पीड़ा को कोई नहीं समझ सका। समझता भी कैसे। क्योंकि इस दर्द को वही समझ सकता है जिसने इस दर्द को सहा हो, प्रभु के प्रेम में घायल हुआ हो। मेरा हृदय तो इस आग को भी संजोए हुए है। रतनों को तो एक जौहरी ही परख सकता है, जिसने प्रेम की पीड़ा रूपी यह अमूल्य रत्न ही खो दिया हो वह क्या जानेगा। अब मीरा की पीडा तो तभी मिटेगी अगर सांवरे श्री कृष्ण ही वैद्य बन कर चले आएं।

मीराबाई की भाषा शैली

मीराबाई की लिखने की शैली अत्यंत ही सुंदर थी। उनके लिखे गए शब्दों में मिठास झलकती थी। वह कृष्ण को अपना सब कुछ मानते हुए सारी कृतियों को रचती थी। मीराबाई की भक्ति में बहुत शक्ति थी। वह अपनी रचनाओं को राजस्थानी मिश्रित भाषा में लिखा करती थी। इसके अलावा उनके द्वारा लिखी गई रचनाएं विशुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में भी थी।

मीराबाई की रचनाएं

मीराबाई के द्वारा रचित ग्रंथ और राग:-

1.राग गोविंद, 2.गीत गोविंद, 3.नरसी जी का मायरा 4. मीरा पद्मावली, 5. राग सोरठा, मीरा की मल्हार, 6. और गोविंद टीका आदि।

मीरा बाई की कुछ कविताएं:-

1.सुन लीजो रोटीती मोरी

2. कृष्ण मंदिरमों मिराबाई नाचे

3.मीरा की होली

4.हरि तुम हरो जन की भीर

5.मेरो दरद न जाणै कोय 

6.प्रभु कब रे मिलोगे

7.पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो

8.पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे 

मीराबाई की मृत्यु

मीराबाई की मृत्यु पर इतिहासकारों में काफी मतभेद रहा है। उनकी मृत्यु 1547 में हुई। अब क्योंकि वह भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी इसीलिए कहा जाता है कि वह कृष्ण की मूर्ति में ही विलीन हो गई। तो कुछ का कहना है की भगवान कृष्णा की मूर्ति के समक्ष नृत्य करते करते वह बेसुध हो गई और भगवान में समा गई।

इस दौरान बांसुरी की आवाज के साथ दिव्य प्रकाश मंदिर के भीतर प्रवेश कर चारो ओर को प्रकाशमय कर दिया। सिर्फ उनकी मृत्यु कैसे हुई में मतभेद नहीं बल्कि उनकी मृत्यु स्थल पर भी मतभेद है। कुछ का कहना है कि उन्होंने द्वारिका में देह त्यागा तो कोई कहता है वह जगह कोई और नहीं बल्कि वृंदावन थी। अब हकीकत क्या है वह सिर्फ प्रभु कृष्ण ही जानते हैं।

FAQs

Q1. मीराबाई का जन्म कहां और कब हुआ था?

A1. मीराबाई का जन्म सन 1498 में मेड़ता शहर में हुआ था।

Q2. मीराबाई की माता-पिता का नाम क्या था?

A2. मीराबाई की माता का नाम वीर कुमारी था। और मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह था।

Q3. मीराबाई का विवाह किसके साथ हुआ था?

A3. मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज से 1516 में हुआ। उनका विवाह उनके इच्छा के विरुद्ध हुआ था। भोजराज राणा सांगा के सबसे वरिष्ठ पुत्र थे। कहा जाता है कि जब उनकी शादी मीराबाई से हुई तो उनका यह नहीं मालूम था कि वह आध्यात्मिकता में पूर्ण रूप से ओत-प्रोत हुए हुई हैं। कहा जाता है कि मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण को ही अपना पति मान लिया था।

Q4. मीराबाई के ससुर का नाम क्या था?

A4. मीराबाई के ससुर का नाम राणा सांगा था। राजा भोजराज इनके ही पुत्र थे।

Q5. मीराबाई की भाषा शैली क्या थी?

A5. मीराबाई की लिखने की शैली अत्यंत ही सुंदर थी। उनके लिखे गए शब्दों में मिठास झलकती थी। वह कृष्ण को अपना सब कुछ मानते हुए सारी कृतियों को रचती थी।

Q6. मीराबाई के पदों की भाषा कैसी है?

A6. मीराबाई के पदों की भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है।

Q7. मीराबाई को मारने के प्रयास किस तरह से किए गए?

A7. मीराबाई साधु संतों के साथ उठती बैठती थी। यह सब बातें मीराबाई के देवर राणा रत्नसिंह को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थी। राणा रत्नसिंह कहते थे कि एक राजघराने की महिला को आम जनता के साथ उठना बैठना शोभा नहीं देता। मीराबाई ने राणा रत्नसिंह की बातों की अवहेलना कर दी। सबसे पहले मीराबाई को मारने के लिए जहर का प्याला देकर भेजा गया। उसके बाद मीराबाई को मारने के लिए सांप भी भेजे गए।

अन्य विषयों पर जीवन परिचययहाँ से पढ़ें

Leave a Reply