एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 5 महापरिनिर्वाण

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Ncert Solutions Class 10 Hindi Sanshipt Budhcharit Chapter 5

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कक्षा : 8
विषय : हिंदी (संक्षिप्त बुद्धचरित)
पाठ : 5 महापरिनिर्वाण

प्रश्न 1 – मार ने बुद्ध को क्या याद दिलाया ? उत्तर में बुद्ध ने क्या कहा ?

उत्तर:-  जब महामुनि मर्कट सरोवर के तट पर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे, तभी उनके पास मार आया और सिर झुकाकर कहने लगा— “हे मुनि, नैरंजना नदी के तट पर जब आपने बुद्धत्‍व प्राप्‍त किया था, तो मैंने आपसे कहा था कि आप कृतकृत्‍य हो गए हैं। आप निर्वाण प्राप्‍त कीजिए। उस समय आप ने कहा था, जब तक मैं पीड़ित और पापियों का उद्धार नहीं कर लेता, तब तक मैं अपने निर्वाण की कामना नहीं करूँगा। अब आप बहुतों को मुक्‍त कर चुके हैं, बहुत से मुक्‍ति के मार्गपर हैं। वे सभी निर्वाण प्राप्‍त करेंगे, अत: अब आप भी निर्वाण प्राप्‍त कीजिए।” मार की विनती सुनकर भगवान बुद्ध ने उत्तर देते हुए कहा- “मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर चुका हूँ। तुम चिंता मत करो। मैं आज से तीसरे मास निर्वाण प्राप्‍त करूगाँ।” भगवान बुद्ध के ये वचन सुनकर मार बहुत प्रसन्‍न हुआ और मुनि को प्रणाम कर वहाँ से चला गया।

प्रश्न 2 – आनंद कौन था ? उसे क्या जानकर आघात लगा ?

उत्तर:- आनंद भगवान बुद्ध का शिष्य था। तथागत ही उसके गुरु थे, स्‍वजन थे और सर्वस्‍व थे। इस प्रकार क़ी हलचल देखकर आनंद काँपने लगा और चक्‍कर खाकर वैसे ही गिर पड़ा जैसे जड़ के कट जाने पर वृक्ष धरती पर गिर पड़ता है। थोड़ी देर बाद कुछ सँभलकर वह खड़ा हुआ और सर्वज्ञ भगवान बुद्ध से इसका कारण पूछने लगा। उन्‍होंने बताया कि मेरा भूलोक में निवास का समय अब पूरा हो चुका है, इसलिए सर्वत्र हलचल है। अब मैं केवल तीन मास और इस पृथ्‍वी पर रहूँगा, फिर चिरंतन निर्वाण प्राप्‍त कर लूंगा। यह सुनकर आनंद को बड़ा आघात लगा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह अत्‍यंत दु:खी होकर विलाप करने लगा।

प्रश्न 3 – तथागत ने परिनिर्वाण से पूर्व मल्लों को क्या समझाया ?

उत्तर :- तथागत ने परिनिर्वाण से पूर्व मल्लों को समझाया कि – “आनंद के समय दु:खी होना उचित नहीं है। यह दुर्लभ और काम्‍य लक्ष्‍य मुझे आज प्राप्‍त हो रहा है। मुझे आज वह सुखमय पुण्‍य प्राप्‍त हो रहा है, जो पंचभूतों से मुक्‍त, जन्‍म से रहित, इंद्रियातीत, शांत और दिव्‍य रूप है। जिसके बाद किसी प्रकार का शोक नहीं होता। यह शोक का समय नहीं है, क्‍योंकि सभी दु:खों का मूल मेरा भौतिक शरीर आज निवृत्त हो रहा है।”

प्रश्न 4 – अपने अंतिम उपदेश में बुद्ध ने अपने शिष्यों से क्या कहा ?

उत्तर :- भगवान बुद्ध ने वहाँ उपस्थित सभी शिष्‍यों को बुलाया और अंतिम उपदेश दिया। उन्‍होंने कहा— “मेरे निर्वाण के बाद आप सबको इस ‘प्र‍ातिमोक्ष’ को ही अपना आचार्य, प्रदीप तथा उपदेष्‍टा मानना चाहिए; आपको उसी का स्‍वाध्‍याय करना चाहिए; उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए; यह प्रातिमोक्ष शील का सार है; मुक्‍ति का मूल है, इसी से मोक्ष प्राप्‍त हो सकता है।” तथागत ने प्रातिमोक्ष के सारे नियम विस्‍तार से समझाए और अंत में कहा- “मैंने गुरु का कर्तव्‍य निभाया है। आगे तुम लोग साधना करो। विहार, वन, पर्वत, जहाँ भी रहो, धर्म का आचरण करो। यदि मेरे बताए आर्यसत्‍यों के विषय में किसी को कोई शंका हो, कोई प्रश्‍न हो, तो पूछ लो।” तथागत के मुख से अंतिम उपदेश ग्रहण करने के बाद भी सभी शिष्‍य मौन और शांत बैठे रहे।

प्रश्न 5 – मल्लों और पड़ोसी राजाओं के बीच युद्ध की संभावना क्यों उत्पन्न हो गई? यह संघर्ष कैसे टल गया ?

उत्तर :- मल्लों और पड़ोसी राजाओं के बीच युद्ध की संभावना भगवान बुद्ध की अस्थियों को लेकर उतपन्न हुई। कुछ समय तक मल्‍लों ने भगवान बुद्ध के अस्थिकलश की विधिवत पूजा-अर्चना की, परंतु धीरे-धीरे पड़ोसी राज्‍यों से दूत आने लगे और भगवान बुद्ध की अस्थियों को माँगने लगे। एक दिन सात पड़ोसी राज्‍यों से दूत आए और उन्‍होंने अस्थियाँ माँगी, परंतु भगवान बुद्ध की अस्थियों के लिए मन में अत्‍यंत श्रद्धा होने तथा अपने बल पर अभिमान होने के कारण मल्‍लों ने भगवान बुद्ध की अस्थियाँ देने से मना कर दिया और वे लड़ने की तैयारी करने लगे। दूत लौट गए और उन्‍होंने सारी बातें अपने-अपने राजाओं से कहीं। दूतों की बात सुनकर पड़ोसी राजा भी क्रोधित हुए। उन्‍होंने मिलकर युद्ध करने का निर्णय किया। वे अपनी-अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए निकल पड़े। पड़ोसी राज्‍यों की सेनाओं ने कुशपुर (कुशीनगर) को चारों ओर से घेर लिया और वे मल्‍लों को ललकारने लगे। उन्‍होंने विविध प्रकार के शस्‍त्र-अस्‍त्र धारण किए। युद्ध के लिए तैयार दोनों पक्षों को देखकर करुणा और दया से भरकर द्रोण नाम के एक ब्राह्मण ने सातों पड़ोसी राजाओं के पास जाकर निवेदन किया- “राजन! बाहर के शत्रुओं को शस्‍त्रों से जीतना सरल है, परंतु परकोटे में बैठे शत्रु को जीतना सरल नहीं। यदि नगर को घेर कर अंदर के शत्रुओं को जीत भी लिया तो भी वह धर्मयुद्ध नहीं होगा। इसे निरपराध नगरवासियों की हत्‍या ही कहा जाएगा इसलिए थोड़ा सोचिए और शांति का उपाय कीजिए। शस्‍त्र से जीते गए मनुष्‍यों का मन फिर से कुपित हो सकता है, परंतु शांति के उपायों से जीते गए मनुष्‍यों का मन सदा के लिए शांत हो जाता है। आप लोग जिस शाक्‍य मुनि का सम्‍मान करना चाहते हैं, उसी की आज्ञा से उसी के उपदेशों के अनुसार शांति का उपाय कीजिए।” द्रोण की बातें सुनकर सातों राजाओं का क्रोध कुछ शांत हुआ और युद्ध टल गया।

प्रश्न 6 – भगवान बुद्ध के उपदेशों को संग्रह करने का भार किसे सौंपा गया और क्यों ?

उत्तर:-  भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह करने का भार आनंद को दिया गया क्योंकि वे सदा भगवान बुद्ध के साथ रहे थे और उन्‍होंने उनके मुख से सभी धर्मोपदेश सुने थे, इसलिए सभी भिक्षुओं ने आनंद से निवेदन किया कि संसार के कल्‍याण के लिए वे सभी धर्मोपदेशों को दुहराएँ।

कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित के सभी अध्यायों के एनसीईआरटी समाधान नीचे देखें

अध्यायअध्याय के नाम
1आरंभिक जीवन
2अभिनिष्क्रमण
3ज्ञान-प्राप्ति
4धर्मचक्र प्रवर्तन
5महापरिनिर्वाण

हम आशा करते हैं कि छात्रों को ncert solutions for class 8 hindi sanshipt budhcharit chapter 5 महापरिनिर्वाण प्राप्त करके काफी खुशी हुई होगी। हमारा उद्देश्य केवल बेहतर ज्ञान देना है। इसके अलावा आप हमारे एनसीईआरटी के पेज से सभी विषयों के एनसीईआरटी समाधान और हिंदी में एनसीईआरटी की पुस्तकें भी प्राप्त कर सकते हैं।

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