शिक्षक दिवस पर कविताएं (Poems On Teachers Day In Hindi)- शिक्षक को भगवान के समान माना गया है, जिसके गुणों और महिमा का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता। फिर भी तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास आदि जैसे बड़े संत और कवियों ने गुरु की महिमा का बखान अपनी कविताओं और दोहों में बड़े की अनोखे अंदाज में किया है। इन कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से बताया है कि हमारे जीवन में गुरु का क्या महत्व है। अगर आप भी कविता पढ़ना पसंद करते हैं, तो आप parikshapoint.com के इस पेज पर दी गई शिक्षक दिवस पर कविता हिंदी में (Teachers Day Poem In Hindi) पढ़ सकते हैं।
शिक्षक दिवस पर कविताएं (Poems On Teachers Day In Hindi)
हमने टीचर्स डे पर कविता (Teachers Day Par Kavita) के साथ-साथ देश के प्रसिद्ध कवियों की सर्वश्रेष्ठ गुरु पर हिंदी कविताएं (Poems On Teachers In Hindi) भी नीचे दी हुई हैं। छात्र 5 सितंबर शिक्षक दिवस (5 September Teachers Day) के अवसर पर अपने शिक्षकों को Teacher Day Par Poem In Hindi और Teacher Par Kavita सुनाकर उन्हें खुश कर सकते हैं। इसके अलावा आप Teacher Day Par Kavita या Teacher Ke Upar Kavita लिखकर और एक सुंदर सा कार्ड बनाकर भी अपने टीचर को दे सकते हैं। शिक्षक दिवस के दिन अपने शिक्षक को Shikshak Diwas Par Kavita के जरिए बधाई और सम्मान देना एक अच्छा विकल्प है। Teachers Day Hindi Poem और गुरु पर कविता हिंदी में (Poem On Teacher In Hindi) नीचे से पढ़ें।
शिक्षक दिवस पर कविता
05 सितंबर शिक्षक दिवस पर कविता हिंदी में
(05 September Teachers Day Poem In Hindi)
कविता 1
कहलाते हैं शिक्षक तब गुरु
जब ब्रह्म का रुप हुआ करते
शिव जैसा वचन देकर
विष्णु सा सृष्टि रचा करते
भारतीय शिक्षक कहलाते हैं अध्यापक
अंग्रेज कहलाते थे सर
काम करते पढ़ाने का
लेकिन होते थे मास्टर
हुआ जब निजी शिक्षकों का प्रचलन
मास्टर हुआ मस्सय
द्वारे-द्वारे नगरी-नगरी
शिक्षकों का यही है आशय
विद्यार्थी होते हैं तब शिष्य
जब शिक्षक होते है गुरु समान
होते हैं छात्रा जब स्टुडेंट
मास्टर का करते तब अपमान
मास्टर कहलाता तब मस्सय
जब सर को कोई ना ज्ञान
विषय वस्तु से दूर रहे
झूठे मन में शान
गुरु तो महर्षि धैम्य थे
जहाँ उपमन्यु-आरुणि अंतेवासी
गुरु हुए जब मुनि वशिष्ठ
तब दशरथ पुत्र हुए वनवासी
गुरु का स्थान जब रखे द्रोण
तब एकलव्य जैसा धनुर्धर हुआ
भेदकर श्वान मुख तीर से
द्वापर में धुरंधर हुआ
होते थे गुरु वैदिक काल में
मास्टर टीचर हाल में
सर की उपाधि अंग्रेज देते
अपनी कूटनीति चाल में
मित्रों! गुरु कभी न मास्टर होगा
न मस्सय न सर
इसकी गरिमा ब्रह्म ही जाने
न पंडित न जर।
– शिक्षक : कल और आज / राजकिशोर सिंह
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कविता 2
गुरु, पितु, मातु, सुजन, भगवान,
ये पाँचों हैं पूज्य महान।
गुरु का है सर्वोच्च स्थान,
गुरु है सकल गुणों की खान।
कर अज्ञान तिमिर का नाश,
दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाश।
रखता गुरु को सदा प्रसन्न,
बनता वही देश सम्पन्न।
कबिरा, तुलसी, संत-गुसाईं,
सबने गुरु की महिमा गाई।
बड़ा चतुर है यह कारीगर,
गढ़ता गाँधी और जवाहर।
आया पावन पाँच-सितम्बर,
श्रद्धापूर्वक हम सब मिलकर।
गुरु की महिमा गावें आज,
शिक्षक-दिवस मनावें आज।
एकलव्य-आरुणि की नाईं,
गुरु के शिष्य बने हम भाई।
देता है गुरु विद्या-दान,
करें सदा इसका सम्मान।
अन्न-वस्त्र-धन दें भरपूर,
गुरु के कष्ट करें हम दूर।
मिल-जुलकर हम शिष्य-सुजान,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण।
– गुरु है सकल गुणों की खान / कोदूराम दलित
कविता 3
कण-कण में समान चेतन स्वरूप बसा,
एकमात्र सत्य रूप दिव्य अभिराम है।
जीवन का पथ जो दिखाता तम-तोम मध्य,
लक्ष्य की कराता पहचान शिवधाम है।
धर्म समझाता कर्म-प्रेरणा जगाता और
प्रेम का पढ़ाता पाठ नित्य अविराम है।
जग से वियोग योग ईश्वर से करवाता
ऐसे शिवरूप सन्त गुरु को प्रणाम है।
जड़ता मिटाता चित्त चेतन बनाता और
शान्ति की सुधा को बरसाता चला जाता है।
तमकूप से निकाल मन को सम्हाल गुरु
ज्ञान रश्मियों से नहलाता चला जाता है।
पग-पग पर करता है सावधान नित्य
पन्थ सत्य का ही दिखलाता चला जाता है।
आता है अचानक ही जीवन में घटना-सा
दिव्य ज्योति उर की जगाता चला जाता है।
भंग करता है अन्धकार का अनन्त रूप
ज्ञान गंग धार से सुपावन बनाता है।
स्वार्थ सिद्धियों से दूर परमार्थ का स्वरूप
लोकहित जीवन को अपने तपाता है।
दूर करता है ढूँढ़-ढूँढ के विकार सभी
पावन प्रदीप गुरु मन में जगाता है।
तत्व का महत्व समझाता अपनत्व सत्व
दिव्य आत्मतत्व से एकत्व करवाता है।
जिनके पदाम्बुजों के कृपा मकरन्द बिना
मंभ्रिंग मत्त हो न भव भूल पाता है।
काम क्रोध लोभ मोह छल छद्म द्वेष दम्भ
जगत प्रपंच नहीं रंच विसराता है।
पाता नहीं नेक सुख जग देख मन्दिर में,
दुःख पर दुःख स्वयं जाता उपजाता है।
गुरु बिना ज्ञान कहाँ, ज्ञान बिना राम कहाँ,
राम बिना जीवन सकाम रह जाता है।
अभिमान सैकताद्रि होता नहीं ध्वस्त और
मान अपमान सुख, दुख को मिटाता कौन?
युग-युग से भरा हुआ था द्वेष भाव पुष्ट
तन-मन से निकाल उसको भगाता कौन?
कागदेश में फँसा था मन हंस पन्थ भूल,
दिव्य मानसर तक उसे पहुँचाता कौन?
गुरुबिन कौन पुण्य पाप समझाता यहाँ
जीवन के बुझते प्रदीप को जगाता कौन?
– गुरु को प्रणाम है / सुरेश कुमार शुक्ल ‘संदेश’
शिक्षक पर कविता
शिक्षक पर कविता हिंदी में
(Poem On Teachers In Hindi)
कविता 4
सद्गुरु गंगातट आए हैं
आओ जीवन धन्य बना लो
जिन्हें न गुरु मिल पाता
उनको कहते हैं सब लोग निगोड़े
ऊपर जाकर सहने पड़ते
उनको यमदूतों के कोड़े
गहकर गुरु की शरण
स्वयं को महादण्ड से आज बचा लो
अहोभाग्य गुरु स्वयं आ गए
करने को कल्याण तुम्हारा
किसे पता है
मिले ना मिले यह अवसर फिर तुम्हें दुबारा
गया समय फिर हाथ न आता
दीक्षा लेकर पुण्य कमा लो
देख-देख हर कर्मकाण्ड में
प्रतिदिन होती लूट यहाँ पर
कृपासिन्धु गुरु जी ने
दीक्षा में दी भारी छूट यहाँ पर
मिली छूट का
समझदार बन इसी समय शुभ लाभ उठा लो
एक नारियल,
पंचवस्त्र के संग पंचमेवाएँ लेकर
और पंच मिष्ठान्न, पंचफल,
पंचशती मुद्राएँ लेकर
सद्गुरु के श्रीचरणों पर
अर्पित कर कृपा-अनुग्रह पा लो
शरणागत पा तुम्हें
कान में मन्त्र तुम्हारे वह फूकेंगे
तीन लोक में
सात जन्म तक वह तुमको संरक्षण देंगे
सद्गुरु तथा शिष्य का नाता
अपने हित के लिए निभा लो
डरो नहीं
जीते हो जैसे जीवन वैसे ही जी लेना
शिष्यों की जीवन-शैली
से उन्हें नहीं कुछ लेना-देना
विगत-अनागत दोनों के ही
सभी कर्मफल क्षमा करा लो ।
– गुरु-दीक्षा / शचीन्द्र भटनागर
कविता 5
गुरु हो हम तो निपट अनाड़ी, भवनिधि कैसें तरबै हो॥टेक॥
जन्म-जन्म से भक्ति न कैलौं, पड़लौं माया के फंद में।
साधु-संत के संग न सोहाएल, कैसें तरबै भव से॥गुरु हो.॥
मातु-पिता-सेवा नहिं कैलहुँ, कहियो न साधु जमैलौं।
द्विज देवन के निन्दा कैलहुँ, वेद शास्त्र नहिं पढ़लौं॥गुरु हो.॥
श्रवण सदा परनिन्दा सुनलक, जिह्वा न गुरु गुण गैलक।
रसना सबसे लड़ल झगड़लक, नयना गुरु नहिं देखलक॥गुरु हो.॥
हस्त कबहुँ नहिं परहित कैलक, स्वाँस नहिं गुरु जपलक।
पैर कबहुँ नहिं नेकी कैलक, मन नहिं ध्यान कमौलक॥गुरु हो.॥
‘किंकर’ ई सब सोच-विचारि के, कुनो न आशा देखलक।
सबहि आश निराशा भऽके, तोहर चरण पकड़लक॥गुरु हो.॥
– गुरु हो हम तो निपट अनाड़ी / किंकर जी
गुरु और शिष्य पर कविता
कविता 6
शिष्य एक गुरु के हैं हम सब,
एक पाठ पढ़ने वाले।
एक फ़ौज के वीर सिपाही,
एक साथ बढ़ने वाले।
धनी निर्धनी ऊँच नीच का,
हममे कोई भेद नहीं।
एक साथ हम सदा रहे,
तो हो सकता कुछ खेद नहीं।
हर सहपाठी के दुःख को,
हम अपना ही दुःख जानेंगे।
हर सहपाठी को अपने से,
सदा अधिक प्रिय मानेंगे।
अगर एक पर पड़ी मुसीबत,
दे देंगे सब मिल कर जान।
सदा एक स्वर से सब भाई,
गायेंगे स्वदेश का गान।
– एक गुरु के शिष्य / श्रीनाथ सिंह
साभार- कविता कोश
वेबसाइट- kavitakosh.org
टीचर्स डे पर कविता बच्चों के लिए
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 1
आदर्शों की मिसाल बनकर,
बाल जीवन संवारता शिक्षक
सदाबहार फूल-सा खिलकर,
महकता और महकाता शिक्षक
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 2
सर को याद पूरी भूगोल
कैसे पता कि पृथ्वी गोल?
मोटी किताबें वे पढ़ जाते?
हम तो थोड़े में थक जाते।।
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 3
दीपक सा जलता है गुरु
फैलाने ज्ञान का प्रकाश
न भूख उसे किसी दौलत की
न कोई लालच न आस
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 4
पापा जी का डंडा गोल,
मम्मी जी की रोटी गोल,
नानी जी की ऐनक गोल,
नाना जी का पैसा गोल,
बच्चे कहते लड्डू गोल,
मैडम कहतीं दुनिया गोल
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 5
सबसे प्यारी मेरी टीचर,
मुझको रोज पढ़ाती हैं।
संग हमारे खेलें-गाएँ,
हर पल वो मुस्कराती हैं।
मुझे बहुत अच्छी लगती हैं,
जब वो पाठ पढ़ाती हैं।
नई-नई वो बात बताती,
अच्छे-से समझाती हैं।
शिक्षक दिवस पर बाल कविता 6
बच्चों के भविष्य को,
शिक्षक सजाता है।
ज्ञान के प्रकाश को,
शिक्षक जलाता है।
सही-गलत के फर्क को,
शिक्षक बताता है।
शिष्यों को सही शिक्षा,
शिक्षक ही दे पाता है।
ऊंचे शिखर पर शिष्य को,
शिक्षक ही चढ़ाता है।
बच्चों के भविष्य में,
और निखार लाता है।
शिष्य को कभी शिक्षक,
नहीं ढाल बनाता है।
असफल होते जब कार्य में,
अफसोस जताता है।
शिक्षक ही समाज का,
उत्तम जो ज्ञाता है।
शम्भू नाथ
गुरु पर दोहे
बंदउँ गुरु पद कंज,कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज,जासु बचन रबि कर निकर।
– रामचरित मानस / तुलसीदास
हिंदी अर्थ: रामचरित मानस की पहली चौपाई में गुरु महिमा बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा सागर हैं और नर रूप में श्री हरि याने भगवान हैं, और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं।
श्री गुर पद नख मनि गन जोती, सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती।
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू।
– रामचरित मानस / तुलसीदास
हिंदी अर्थ: श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्यदृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं।
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
– कबीर
हिंदी अर्थ: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान॥
– कबीर
हिंदी अर्थ: बड़े-बड़े विद्वान शास्त्रों को पढ़कर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, परन्तु गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय॥
– कबीर
हिंदी अर्थ: गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए, गुरू को अथवा गोविन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
गुरु बिनु ऐसी कौन करै?
माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै।
भवसागर तैं बूड़त राखै, दीपक हाथ धरै।
सूर स्याम गुरु ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरै॥
– गुरु महिमा / सूरदास
parikshapoint.com की तरफ से सभी शिक्षकों को “शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं” (Happy Teachers Day)।
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बहुत ही अद्भुत कविताएं शिक्षकों के सम्मान पर