छात्र इस आर्टिकल के माध्यम से एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 9 कबीर की साखियाँ प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों के लिए इस आर्टिकल पर कक्षा 8 हिंदी पाठ 9 के प्रश्न उत्तर दिए हुए हैं। छात्र कक्षा 8 हिंदी किताब के प्रश्न उत्तर पाठ 9 कबीर की साखियाँ के माध्यम से परीक्षा की तैयारी अच्छे से कर सकते हैं। छात्रों के लिए कक्षा 8 हिंदी अध्याय 9 सवाल जवाब साधारण भाषा में बनाए गए है। जिससे छात्र class 8 hindi chapter 9 question answer सही से समझ सके। छात्रों के लिए वसंत भाग 3 कक्षा 8 पाठ 9 कबीर की साखियाँ के प्रश्न उत्तर नीचे दिए हुए हैं।
Ncert Solutions For Class 8 Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ
हिंदी 8 वीं कक्षा अध्याय 9 कबीर की साखियाँ के प्रश्न उत्तर को एनसीईआरटी यानि (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के सहायता से बनाया गया है। कक्षा 8 की हिंदी की किताब के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। देखा गया है कि छात्र कक्षा आठवीं हिंदी गाइड पर काफी पैसा खर्च कर देते हैं। लेकिन यहां से कक्षा आठ के हिंदी के प्रश्न उत्तर पूरी तरह से मुफ्त में प्राप्त कर सकते हैं। छात्र ncert solutions for class 8th hindi chapter 9 कबीर की साखियाँ नीचे देखें।
कक्षा : 8
विषय : हिंदी (वसंत भाग -3)
पाठ : 9 कबीर की साखियाँ
प्रश्न-अभ्यास
पाठ से :-
प्रश्न 1 – तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं – उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- कबीर ने तलवार और म्यान के माध्यम से अत्यंत गूढ़ एवं रोचक बात कही है। उनके अनुसार हमें वस्तु को महत्त्व देना चाहिए न कि वस्तु के डिब्बे को महत्त्व देना चाहिए। कबीर इसी प्रकार गुणों को महत्व देने की बात करते हैं। वे शरीर को म्यान मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति का अपना कोई अस्तित्व नहीं है जब तक की उसमें गुण का संचार न हो। अतः गुण यहां तलवार है और शरीर म्यान है।
प्रश्न 2 – पाठ की तीसरी साखी – जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहि के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर :- इस साखी के द्वारा कबीर जी कहते हैं कि हमारा मन अति चंचल है। यह चारों दिशाओं में लगातार भ्रमण करता रहता है। इसी कारण हमारा मन किसी काम में नहीं लग पाता। एक ही चीज़ को बार – बार समझकर भी उसका ज्ञान नहीं हो पाता। मन अपनी गति में रहता है। उसे और कुछ भी याद नहीं रहता। मनुष्य मन के बंधन में बंधकर सब कुछ भूल जाता है।
प्रश्न 3 – कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- कबीर के उक्त दोहे में घास का अर्थ :- गरीब लोग है। ये गरीब मनुष्य पूर्णतः लाचार एवं सहाय है। कबीर के उक्त दोहे का संदेश है कि-हमारी निंदा करने वाले मनुष्य यदि हमारे साथ रहेंगे, तो वे हमें हमारी त्रुटियों से करवाते रहेंगे। हम इन त्रुटियों को दूर कर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ सकेंगे। निंदक सदैव दूसरों को आगे की प्रेरणा देते हैं। कबीर के उक्त दोहे का सीधा और स्पष्ट संदेश निंदक द्वारा दोष बताकर प्रेरणा देना है। इसलिए वे घास की निंदा करने से मना करते है।
प्रश्न 4 – मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है ?
उत्तर :- आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह ‘कबीर’ नहिं उलटिए, वही एक की एक।
पाठ से आगे :-
प्रश्न 1 – “या आपा को डारि दे, दया करे सब कोय।“
“ऐसी बानी बोलिए मन का आप खोय”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का ?
उत्तर :- आपा और आत्म विश्वास में अंतर–आपा एक प्रकार से क्रोध का भाव है। यह उत्तेजना एवं पराकाष्ठा को बढ़ाने का कार्य करता है। दूसरी तरफ आत्मविश्वास अंतर्मन की दृढ़ता और स्पष्टवादिता को प्रकट करता है। आत्मविश्वास किसी भी प्रकार के कार्य को कर लेने की क्षमता की प्रकट करता है। आत्मविश्वास शक्ति को संगठित और मन को एकजुट रखने का दूसरा नाम है, जबकि क्रोध शारीरिक क्षमता घटाने और शरीर को गलाने का काम करता है।
प्रश्न 2 – आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर :- आपा और उत्साह में अंतर :- आपा क्रोध, गुस्से आदि का पर्याय है। यह अंतर्मन को जलाने और गलाने का काम करता है। क्रोध में मानव की रुचियां और संयम समाप्ति की ओर चला जाता है। यह शारीरिक क्षमता को गलाने और घटाने का कार्य करता है। दूसरी तरफ उत्साह उमंग का दूसरा नाम है। उत्साह क्रोध की तुलना में शरीर में रक्त का उचित संचार करता है। मन को प्रसन्नचित्त रखता है। किसी भी कार्य को करने में उत्साह की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। उत्साह जितना अधिक हो उतना अच्छा है और क्रोध जितना कम हो उतना अच्छा है।
प्रश्न 3 – सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है ? लिखिए।
उत्तर :- कबीर की निम्नलिखित पंक्तियों से उक्त पंक्तियों के भाव मिलते है:-
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
किसी भी क्षेत्र में एक समान होने के लिए व्यक्ति के विचारों एवं सोच का मिलना अति आवश्यक हो जाता है। आकार, शरीर रूप – रेखा, रंग आदि का विशेष महत्व नहीं रह जाता है। महत्त्व तो मात्र विचार एवं गुण का है। एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से मिलने एवं गुण संपन्न बनाने के लिए दोनों में पर्याप्त समानता की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 4 – कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता हैं ? ज्ञात कीजिए।
उत्तर :- साखी शब्द ‘साक्षी’ शब्द से बिगड़कर बना है। इसका अर्थ ‘गवाही’ है। महात्मा कबीर ने जिन तथ्यों को अपने अनुभव से जाना था और उन्हें अपने जीवन में अपनाया था, उन्हें उन्होंने अपने ‘साक्षी’ अथवा साखी के रूप में मिलता है। सखियाँ अनुभव किए गए सत्य की प्रतीक है और कबीर उस सत्य के गवाह है।
भाषा की बात :-
प्रश्न 1 – बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। ग्यान, जीभि, पाउँ, तलि, आँखि, बरी।
उत्तर:-
ग्यान :- ज्ञान
जीभि :- जीभ
पाऊँ :- पैर
तलि :- पैर के नीचे का तला
आँखि :- आँख
बैरी :- शत्रु
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